नेपच्यून के पार मिला प्राचीन सौरमंडलीय समूह

नेपच्यून के पार मिला प्राचीन सौरमंडलीय समूह

खगोलविदों ने नेपच्यून की कक्षा के पार, कुइपर बेल्ट (Kuiper Belt) के गहराई वाले क्षेत्र में एक संभावित प्रारंभिक या आद्य समूह (Primordial Cluster) के संकेत खोजे हैं। यह खोज दर्शाती है कि बर्फीले खगोलीय पिंडों का एक प्राचीन समूह अब तक सौरमंडल के शुरुआती युग से बिना किसी बड़ी गड़बड़ी के मौजूद है। यह खोज बाहरी सौरमंडल की उत्पत्ति और विकास संबंधी समझ को नए सिरे से परिभाषित कर सकती है।

कुइपर बेल्ट का वैज्ञानिक महत्व

कुइपर बेल्ट सूर्य से लगभग 30 से 50 खगोलीय इकाइयों (AU) की दूरी तक फैली है। यह क्षेत्र सौर नीहारिका (solar nebula) के प्राचीन अवशेषों का घर है, जिसमें करोड़ों बर्फीले पिंड और कुछ बड़े बौने ग्रह जैसे प्लूटो, हाउमिया और एरिस शामिल हैं। यह क्षेत्र बृहस्पति और नेपच्यून जैसे विशाल ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से आकार ग्रहण करता है और सौरमंडल की प्रारंभिक परिस्थितियों के निशान सुरक्षित रखे हुए है।

43 एयू दूरी पर नया समूह

प्रिंसटन विश्वविद्यालय की टीम ने लगभग 43 AU दूरी पर अत्यंत घने और स्थिर पिंडों के एक समूह की पहचान की है। इन पिंडों की कक्षाएँ अत्यंत कम विकेन्द्रता (low eccentricity) वाली और दीर्घकालिक रूप से स्थिर हैं, जिससे पता चलता है कि इन्हें अरबों वर्षों से कोई बड़ा व्यवधान नहीं पहुंचा। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह समूह पहले से ज्ञात कुइपर बेल्ट संरचनाओं से भी पुराना हो सकता है और संभवतः एक “आंतरिक प्राचीन समूह (inner primordial cluster)” का प्रतिनिधित्व करता है।

ग्रह निर्माण सिद्धांतों पर प्रभाव

यह खोज ग्रहों के निर्माण और उनके वर्तमान स्थानों तक के प्रवासन (migration) को समझने में मदद कर सकती है। साथ ही, यह उन अंतरतारकीय परिस्थितियों के बारे में भी संकेत देती है, जिनका सामना सौरमंडल के निर्माण के समय हुआ होगा। इस समूह की स्थिरता यह दर्शाती है कि कुइपर बेल्ट की संरचना बहु-स्तरीय (multi-component) है, जो सौरमंडल के प्रारंभिक गतिशील चरणों के दौरान विकसित हुई।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • कुइपर बेल्ट सूर्य से 30–50 AU तक फैली है।
  • प्रमुख कुइपर बेल्ट वस्तुएँ हैं प्लूटो, एरिस, और हाउमिया।
  • कम विकेन्द्रता वाली “ठंडी आबादी” (cold population) कुइपर बेल्ट की सबसे प्राचीन परत मानी जाती है।
  • नया पाया गया समूह “प्राचीन आद्य समूह (primordial cluster)” के रूप में देखा जा रहा है, जो अब तक बिना किसी प्रमुख गुरुत्वीय व्यवधान के स्थिर रहा है।

बाहरी सौरमंडल की परतदार संरचना

पहले के अध्ययन कुइपर बेल्ट को “हॉट” और “कोल्ड” दो भागों में बाँटते थे, जिनमें “कोर” और “कर्नेल” जैसी उपसंरचनाएँ शामिल थीं। नवीन अध्ययन में पाया गया भीतरी कर्नेल (inner kernel) और भी कम विकेन्द्रता वाला है, जो संकेत देता है कि यह पहले से ज्ञात कर्नेल से भी पहले बना होगा। यह खोज सौरमंडल की बाहरी संरचना की जटिलता और विकास की गहराई को बेहतर ढंग से समझने का अवसर प्रदान करती है।

Originally written on November 24, 2025 and last modified on November 24, 2025.

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