नीलगिरी की पहाड़ियों में मिला एक दुर्लभ गेको प्रजाति: ‘ड्राविडोजेको कुनूर’ की खोज

तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले की कुनूर पहाड़ियों से गेको की एक नई प्रजाति की खोज की गई है, जिसे वैज्ञानिकों ने Dravidogecko coonoor नाम दिया है। यह खोज पश्चिमी घाट की जैव विविधता के संरक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
नई प्रजाति की खोज और पहचान
इस खोज से संबंधित शोधपत्र ‘बायोनोमिना’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जिसमें प्रमुख लेखक ए. अबीनेश और उनकी टीम ने इस नई प्रजाति का औपचारिक विवरण प्रस्तुत किया है। पहले माना जा रहा था कि यह गेको प्रजाति Hemidactylus anamallensis (अब Dravidogecko anamallensis) का हिस्सा है, लेकिन पश्चिमी घाट में किए गए विस्तृत सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ कि वास्तव में यह एक अलग और विशिष्ट प्रजाति है।
इस नई खोज के साथ अब Dravidogecko प्रजातियों की कुल संख्या पश्चिमी घाट में नौ हो गई है।
आवास और पारिस्थितिक स्थिति
शोधकर्ताओं ने बताया कि यह गेको प्रजाति न केवल प्राकृतिक स्थानों में, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी देखी गई है — जैसे इमारतों की दीवारों, पेड़ की छाल, शाखाओं और दरारों में। कुनूर की पहाड़ियों का पारिस्थितिक तंत्र, जहां यह प्रजाति पाई गई, मुख्यतः पर्वतीय वनों और मोनोकल्चर (एकल प्रजाति) वृक्षारोपण से बना हुआ है, जो मानवीय निवास और गतिविधियों से प्रभावित है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Dravidogecko: एक गेको प्रजाति समूह जो विशेष रूप से पश्चिमी घाट के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
- पश्चिमी घाट: भारत की एक जैव विविधता हॉटस्पॉट, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल है।
- कुनूर: तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में स्थित एक प्रमुख पर्वतीय नगर, जो उच्च ऊँचाई और ठंडी जलवायु के लिए प्रसिद्ध है।
- गेको: छिपकलियों का एक समूह जो अपनी दीवारों पर चढ़ने की क्षमता और रात्रिचर व्यवहार के लिए जाना जाता है।
संरक्षण की चुनौतियाँ
लेखकों ने आगाह किया कि Dravidogecko coonoor की पूरी आबादी संरक्षित क्षेत्रों के बाहर पाई गई है, जिससे इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यह प्रजाति वनों की कटाई, आवास विखंडन (fragmentation), और जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हो सकती है। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानिक (endemic) होने के कारण, इसके लिए विशेष संरक्षण योजनाएँ आवश्यक हैं।
निष्कर्ष
Dravidogecko coonoor की खोज केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि नीलगिरी और पश्चिमी घाट की पारिस्थितिक जटिलताओं को समझने की दिशा में एक अहम कदम है। यह खोज बताती है कि भारत की पर्वतीय जैव विविधता अभी भी बहुत कुछ छुपाए हुए है, जिसे खोजने और बचाने की आवश्यकता है।