नारियल तेल की कीमतों में ऐतिहासिक उछाल: कारण और प्रभाव

भारत में खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति दर जून में घटकर -1.06% हो गई, जो जनवरी 2019 के बाद सबसे कम है। फिर भी कुछ वस्तुओं के दाम उपभोक्ताओं को अब भी झटका दे रहे हैं, विशेष रूप से वनस्पति तेलों की कीमतें। इन सभी में नारियल तेल की कीमतों में हुई बेतहाशा वृद्धि ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है।
नारियल तेल की कीमतें क्यों बढ़ीं?
वर्तमान में नारियल तेल की खुदरा कीमत लगभग ₹460 प्रति किलोग्राम तक पहुँच गई है, जो जनवरी की ₹240-250 की कीमत से लगभग दोगुनी है। यह वृद्धि तिल के तेल जैसी पारंपरिक प्रीमियम श्रेणी के तेलों से भी अधिक है। विशेषज्ञों के अनुसार इस असाधारण मूल्य वृद्धि का मुख्य कारण वैश्विक स्तर पर आपूर्ति में कमी है।
फिलिपींस और इंडोनेशिया, जो विश्व के प्रमुख नारियल तेल उत्पादक और निर्यातक देश हैं, वहां एल नीनो के कारण सूखा पड़ा जिससे नारियल के फूलों और फलों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। एक नारियल को पूर्ण रूप से परिपक्व होने में लगभग एक वर्ष लगता है, इसलिए इस प्राकृतिक आपदा का असर अब देखा जा रहा है।
घरेलू उत्पादन और उपभोग की स्थिति
भारत में नारियल तेल का उत्पादन लगभग 5.7 लाख टन है, जिसमें से केवल 3.9 लाख टन खाद्य उपयोग में आता है। शेष तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों, साबुन, और औद्योगिक उत्पादों में होता है। इसके अलावा भारत, विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में नारियल की खेती के बावजूद, नारियल तेल का निर्यात नगण्य है।
आयातित तेलों की बढ़ती हिस्सेदारी
भारत में खाद्य तेलों की कुल खपत लगभग 260 लाख टन है, जिसमें से 72% हिस्सा आयातित तेलों — पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल — का है। पारंपरिक देसी तेलों में केवल सरसों तेल ही कुछ हद तक प्रतिस्पर्धा बनाए हुए है। नारियल तेल की खपत सीमित है और इसकी कीमतें बढ़ने से यह प्रतिस्पर्धा और कम हो सकती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- एल नीनो एक वैश्विक जलवायु घटना है, जो प्रशांत महासागर में तापमान में बदलाव के कारण होती है और इसका प्रभाव कृषि उत्पादन पर पड़ता है।
- फिलिपींस और इंडोनेशिया दुनिया के सबसे बड़े नारियल तेल उत्पादक देश हैं।
- भारत में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक प्रमुख नारियल उत्पादक राज्य हैं।
- फिलिपींस सरकार ने अक्टूबर 2024 से डीज़ल में 3% नारियल तेल आधारित बायोफ्यूल मिलाना अनिवार्य किया है।
नारियल तेल की कीमतों में यह उछाल न केवल वैश्विक आपूर्ति संकट को दर्शाता है, बल्कि घरेलू उत्पादन की सीमाएं और उपभोक्ता विकल्पों में बदलाव की प्रवृत्ति को भी उजागर करता है। ऐसे में यह संकट आयातित तेलों पर निर्भरता को और बढ़ा सकता है, जिससे देसी तेलों की स्थिति और भी कमजोर हो सकती है।