नई भूकंप डिज़ाइन कोड 2025: पूरा हिमालयी क्षेत्र अब ‘ज़ोन VI’ में शामिल

नई भूकंप डिज़ाइन कोड 2025: पूरा हिमालयी क्षेत्र अब ‘ज़ोन VI’ में शामिल

भारत ने भूकंपीय खतरे के आकलन में एक ऐतिहासिक सुधार करते हुए संशोधित भूकंप डिज़ाइन कोड 2025 जारी किया है। इस नई व्यवस्था के तहत पूरा हिमालयी क्षेत्र अब ‘ज़ोन VI’ यानी सबसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में शामिल किया गया है। यह सुधार देश में भूकंप खतरे के वैज्ञानिक मूल्यांकन और निर्माण सुरक्षा मानकों की दिशा में एक निर्णायक परिवर्तन को दर्शाता है। अब भारत के 61% भूभाग को मध्यम से उच्च भूकंपीय जोखिम क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है, जिससे शहरी नियोजन, अवसंरचना और भवन निर्माण के मानक व्यापक रूप से प्रभावित होंगे।

हिमालयी क्षेत्र के लिए एकसमान उच्च जोखिम वर्गीकरण

विशेषज्ञों के अनुसार, यह नया वर्गीकरण लंबे समय से चली आ रही असंगतियों को समाप्त करता है, जहाँ पहले हिमालयी क्षेत्र के कुछ हिस्से ज़ोन IV में और कुछ ज़ोन V में रखे गए थे। वैज्ञानिकों ने संकेत दिया कि पूर्ववर्ती मानचित्रों ने केंद्रीय हिमालय के ‘लॉक्ड फॉल्ट सेगमेंट्स’ के खतरे को कम करके आंका था जबकि इस क्षेत्र में लगभग दो शताब्दियों से कोई बड़ा भूकंपीय विच्छेदन (rupture) नहीं हुआ है। नई व्यवस्था में हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (HFT) पर तनाव संचय और ऊर्जा प्रसार (rupture propagation) से जुड़ी नवीनतम वैज्ञानिक जानकारियों को शामिल किया गया है।

वैज्ञानिक आधार और नई पद्धति

इस संशोधित भूकंप मानचित्र को भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) ने प्रायिकतामूलक भूकंपीय जोखिम मूल्यांकन (Probabilistic Seismic Hazard Assessment – PSHA) पद्धति के आधार पर तैयार किया है। इसमें सक्रिय भ्रंश (faults), अधिकतम संभावित तीव्रता, भू-कंपन क्षय (attenuation), क्षेत्रीय टेक्टॉनिक संरचना और उपसतही शैल संरचना (subsurface lithology) जैसे तत्वों को सम्मिलित किया गया है। यह तरीका पुराने ऐतिहासिक केंद्रों और क्षति-आधारित मॉडल की जगह लेता है, जो औद्योगिक नगरों और तीव्र गति से बढ़ते शहरों में जोखिम का सटीक आकलन नहीं कर पाते थे। नई नीति के अनुसार, ज़ोन सीमाओं के पास स्थित बस्तियाँ स्वचालित रूप से उच्च जोखिम श्रेणी में मानी जाएँगी।

नई भूकंप डिज़ाइन कोड के प्रमुख सुरक्षा सुधार

2025 के कोड में भवनों की संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक दोनों प्रकार की सुरक्षा पर कड़े मानक लागू किए गए हैं।

  • ऐसे गैर-संरचनात्मक घटक जो भवन के भार का 1% से अधिक हैं, उन्हें अनिवार्य रूप से ब्रेसेस द्वारा स्थिर किया जाएगा।
  • सक्रिय भ्रंशों के पास निर्मित संरचनाओं को पल्स-जैसे निकट-भ्रंश कंपन (near-fault shaking) के प्रभावों को ध्यान में रखकर डिज़ाइन करना होगा।
  • तरलीकरण (liquefaction), मृदा लचीलापन और स्थल-विशिष्ट प्रतिक्रिया स्पेक्ट्रा जैसे पहलुओं के लिए नए दिशा-निर्देश जोड़े गए हैं।
  • अस्पताल, स्कूल, पुल और पाइपलाइन जैसे महत्वपूर्ण ढाँचे इस तरह से डिज़ाइन किए जाएँगे कि तीव्र भूकंपों के बाद भी उनकी कार्यक्षमता बनी रहे।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पूरा हिमालयी आर्क अब ‘ज़ोन VI’ उच्चतम जोखिम श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
  • भारत का मध्यम से उच्च भूकंपीय जोखिम वाला क्षेत्र 59% से बढ़कर 61% हो गया है।
  • नया मानचित्र Probabilistic Seismic Hazard Assessment (PSHA) पद्धति पर आधारित है।
  • भवन भार के 1% से अधिक वजन वाले गैर-संरचनात्मक तत्वों को अनिवार्य रूप से एंकर करना होगा।

जोखिम मानचित्रण और क्षेत्रीय विविधताएँ

नई प्रणाली में पहली बार PEMA (Population Exposure and Mitigation Assessment) पद्धति अपनाई गई है, जिसमें केवल भू-कंपन तीव्रता नहीं बल्कि जनसंख्या घनत्व, अवसंरचना एकाग्रता और सामाजिक-आर्थिक भेद्यता को भी जोखिम निर्धारण में शामिल किया गया है। इससे भूकंप जोखिम का आकलन अब केवल भौतिक प्रभाव नहीं, बल्कि संभावित सामुदायिक नुकसान के आधार पर किया जाएगा। जहाँ हिमालयी क्षेत्र का पुनर्वर्गीकरण व्यापक रूप से किया गया है, वहीं दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत में अपेक्षाकृत स्थिर भूगर्भीय स्थितियों के कारण केवल मामूली वैज्ञानिक संशोधन किए गए हैं।

Originally written on December 2, 2025 and last modified on December 2, 2025.

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