धारा 498-ए पर सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला: महिला सुरक्षा के लिए खतरा?

जुलाई के अंत में सुनाए गए शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की पूर्व धारा 498-ए (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 85) के तहत गिरफ्तारी या जबरन कार्रवाई पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी है। यह फैसला घरेलू हिंसा और लैंगिक समानता के दृष्टिकोण से गंभीर चिंताएं पैदा करता है।

धारा 498-ए का उद्देश्य और पृष्ठभूमि

साल 1983 में लागू की गई धारा 498-ए का मकसद विवाहिता महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की जाने वाली ‘क्रूरता’ से बचाना था। इसमें दहेज उत्पीड़न, आत्महत्या के लिए उकसाना, और जीवन या स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाली हिंसा शामिल हैं। यह प्रावधान तीन साल की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान करता है। इस कानून को दहेज मृत्यु के बढ़ते मामलों और घरेलू हिंसा के व्यापक स्वरूप को देखते हुए लाया गया था, ताकि यह दहेज निषेध अधिनियम, 1961 जैसे अन्य कानूनों के साथ मिलकर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।

‘कूल-ऑफ’ अवधि और गिरफ्तारी पर रोक

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में शिकायत दर्ज होने के बाद दो महीने तक आरोपी की गिरफ्तारी या जबरन कार्रवाई न करने और मामलों को परिवार कल्याण समितियों को सौंपने के निर्देश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस व्यवस्था को मान्यता दे दी है। नतीजतन, गंभीर साक्ष्य होने पर भी पुलिस दो महीने तक गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी। इससे पीड़ित महिला की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और शिकायत दर्ज कराने में पहले से मौजूद हिचक और बढ़ सकती है।

‘दुरुपयोग’ की बहस

धारा 498-ए के ‘दुरुपयोग’ का तर्क अक्सर सामने आता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रीति गुप्ता बनाम स्टेट ऑफ झारखंड (2010) और अर्नेश कुमार बनाम स्टेट ऑफ बिहार (2014) जैसे मामलों में दोहराया है। हालांकि, दुरुपयोग के प्रमाण के रूप में कोई ठोस सांख्यिकीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

  • NCRB के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, इस कानून के तहत सजा दर लगभग 18% है, जो कई अन्य अपराधों की तुलना में अधिक है।
  • कम सजा दर का मतलब यह नहीं कि मामला झूठा है, बल्कि यह जांच में खामियां, सामाजिक दबाव और सबूत जुटाने की कठिनाइयों को भी दर्शाता है।

जमीनी हकीकत और आंकड़े

2022 में NCRB ने धारा 498-ए के तहत 1,34,506 मामले दर्ज किए। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 ने घरेलू हिंसा की भारी ‘अंडर-रिपोर्टिंग’ को रेखांकित किया है। महिला संगठन ‘हुमसफर’ के अनुसार, मामलों की बढ़ती संख्या को कानूनी जागरूकता का परिणाम भी माना जा सकता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • धारा 498-ए, वर्ष 1983 में आईपीसी में जोड़ी गई थी।
  • यह अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85 में सम्मिलित है।
  • 2022 में भारत में घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों की सजा दर 18% रही।
  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961 और धारा 498-ए एक साथ लागू होते हैं।

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