दो दशक बाद फिर मिला दुनिया का सबसे छोटा साँप: बारबाडोस थ्रेडस्नेक की वापसी

दो दशक बाद फिर मिला दुनिया का सबसे छोटा साँप: बारबाडोस थ्रेडस्नेक की वापसी

लगभग बीस वर्षों तक गायब रहने के बाद, दुनिया का सबसे छोटा ज्ञात साँप — बारबाडोस थ्रेडस्नेक — एक बार फिर वैज्ञानिकों की नजरों में आया है। यह खोज पूर्वी कैरेबियाई द्वीप बारबाडोस के एक छोटे से जंगल में तब हुई जब पर्यावरण मंत्रालय के प्रोजेक्ट ऑफिसर, कॉनर ब्लेड्स ने एक चट्टान उठाई और साँस रोक ली। उनके अनुसार, “एक साल तक ढूंढने के बाद निराशा होना स्वाभाविक था।”

दुनिया का सबसे छोटा साँप: पहचान और चुनौती

बारबाडोस थ्रेडस्नेक इतना छोटा है कि यह एक सिक्के पर आराम से बैठ सकता है और नंगी आंखों से पहचानना लगभग असंभव है। इसकी लंबाई केवल चार इंच (10 सेंटीमीटर) तक होती है और यह कीड़ों जैसे दीमक व चींटियों को खाता है। यह साँप अंधा होता है, जमीन में बिल बनाकर रहता है, और एक पतला अंडा देता है। कॉनर ब्लेड्स ने इसे काँच की शीशी में मिट्टी और पत्तियों के साथ रखा और माइक्रोस्कोप के नीचे इसकी पहचान की, जिसमें pale yellow dorsal lines इसकी विशेषता बनीं।

वैज्ञानिक प्रयास और पुनः खोज

बारबाडोस थ्रेडस्नेक 1889 के बाद केवल कुछ बार ही देखा गया है। यह Re:wild संस्था की उस सूची में शामिल था जिसमें 4,800 पौधे, प्राणी और फफूंद शामिल हैं जिन्हें “विज्ञान से खोया हुआ” माना गया था। 2008 में टेम्पल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एस. ब्लेयर हेजेस ने इसका DNA विश्लेषण कर इसे एक नई प्रजाति के रूप में स्थापित किया और इसका वैज्ञानिक नाम Tetracheilostoma carlae रखा।

संरक्षण की आवश्यकता और आशा की किरण

इस साँप की दुर्लभता इस तथ्य से समझी जा सकती है कि 2006 में खोज के समय केवल तीन नमूने ही ज्ञात थे। बारबाडोस में जैव विविधता पर संकट पहले से है — यहाँ की कई स्थानिक प्रजातियाँ, जैसे बारबाडोस रेसर और बारबाडोस स्किंक, पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। इसलिए वैज्ञानिकों को आशा है कि इस साँप की पुनः खोज इसके प्राकृतिक आवास के संरक्षण की दिशा में एक नया कदम बन सकती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • बारबाडोस थ्रेडस्नेक दुनिया की सबसे छोटी ज्ञात साँप प्रजाति है, जिसकी अधिकतम लंबाई केवल 10 सेंटीमीटर होती है।
  • इसका वैज्ञानिक नाम Tetracheilostoma carlae है, जो प्रोफेसर हेजेस ने अपनी पत्नी के नाम पर रखा।
  • यह साँप अंधा होता है और भूमिगत जीवन जीता है।
  • यह पहली बार 2006 में वैज्ञानिक रूप से पहचाना गया और 2008 में इसका वर्णन एक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
Originally written on August 1, 2025 and last modified on August 1, 2025.

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