दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति के बावजूद, लाइलाज बने मरीजों की पीड़ा

भारत में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित सैकड़ों मरीज, विशेष रूप से लिसोजोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स (LSDs) जैसे गौचर, पॉम्पे, फैब्री, MPS I और II से ग्रस्त बच्चे, आवश्यक चिकित्सा देखभाल से वंचित हैं। राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD) 2021 और वित्तीय सहायता कार्यक्रम के बावजूद, इन मरीजों को जीवनरक्षक उपचार नहीं मिल पा रहा है।
नीति की सीमाएं और वित्तीय बाधाएं
NPRD 2021 के तहत, प्रत्येक पात्र मरीज को ₹50 लाख तक की एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। हालांकि, यह सहायता LSDs जैसी दीर्घकालिक और महंगी बीमारियों के लिए अपर्याप्त साबित हो रही है। कई मरीजों ने इस सीमा को पार कर लिया है, लेकिन आगे की सहायता के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
न्यायिक हस्तक्षेप और सरकारी प्रतिक्रिया
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2024 में स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया था कि वह ₹50 लाख की सीमा से परे भी वित्तीय सहायता प्रदान करे और 2024-25 और 2025-26 के लिए ₹974 करोड़ का राष्ट्रीय कोष स्थापित करे। हालांकि, मंत्रालय ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां मामला लंबित है।
मरीजों की दुर्दशा और समर्थन समूहों की अपील
LSDSS के अनुसार, 300 से अधिक पात्र मरीज उपचार की प्रतीक्षा में हैं, और कम से कम 50 मरीज उपचार के अभाव में अपनी जान गंवा चुके हैं। दिल्ली में, 70 मरीजों को आवश्यक उपचार नहीं मिल पा रहा है, और 7 की स्थिति गंभीर है।
खबर से जुड़े सामान्य ज्ञान तथ्य
- लिसोजोमल स्टोरेज डिसऑर्डर्स (LSDs): यह 70 से अधिक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों का समूह है, जो कोशिकाओं में एंजाइम की कमी के कारण होता है, जिससे शरीर में हानिकारक पदार्थ जमा हो जाते हैं।
- एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ERT): यह LSDs के लिए एक मानक उपचार है, जिसमें शरीर में अनुपस्थित एंजाइम को बाहरी स्रोत से प्रदान किया जाता है। यह उपचार महंगा होता है और जीवनभर जारी रहता है।
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD) 2021: इस नीति के तहत, सरकार ने दुर्लभ बीमारियों के उपचार के लिए वित्तीय सहायता और केंद्रों की स्थापना की है, लेकिन इसकी सीमाएं और कार्यान्वयन में चुनौतियां बनी हुई हैं।
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग कोष (NFRD): दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस कोष की स्थापना का आदेश दिया था, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हुआ है।
- सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले से यह तय होगा कि सरकार दुर्लभ बीमारियों के मरीजों को कितनी वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य है।
भारत में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित मरीजों की स्थिति चिंताजनक है। नीति और न्यायिक आदेशों के बावजूद, मरीजों को आवश्यक उपचार नहीं मिल पा रहा है। यह आवश्यक है कि सरकार तत्काल कदम उठाए, वित्तीय सहायता की सीमाओं को लचीला बनाए, और नीति के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करे, ताकि इन मरीजों को जीवनरक्षक उपचार मिल सके।