दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला: बच्चा गवाह मुकर जाए, फिर भी नहीं रुकेगा POCSO कानून के तहत न्याय
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि कोई बच्चा यौन शोषण के मामले में मुकदमे के दौरान अपने बयान से मुकर जाता है, तो मात्र इस आधार पर POCSO कानून के तहत आपराधिक कार्यवाही को समाप्त नहीं किया जा सकता। यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में बाल यौन शोषण मामलों को समझने और उनका निपटान करने के नजरिए में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।
पारिवारिक दबाव और बाल पीड़ितों की संवेदनशीलता
कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि बाल पीड़ित अक्सर पारिवारिक और सामाजिक दबाव के चलते अपने बयान बदल देते हैं। विशेष रूप से तब जब आरोपी परिवार का सदस्य, देखभाल करने वाला या मुख्य कमाने वाला हो। ऐसे मामलों में बच्चे खुद को एक ऐसे द्वंद्व में पाते हैं, जहां उन्हें अपनी सुरक्षा, आश्रय और पारिवारिक समर्थन के बीच चुनना पड़ता है। इस फैसले में अदालत ने स्पष्ट कहा कि केवल इसलिए कि बच्चा गवाही में पलट गया, अभियोजन अपने आप कमजोर नहीं हो जाता।
मेडिकल और फॉरेंसिक सबूत की निर्णायक भूमिका
यह फैसला एक व्यक्ति की उस अपील को खारिज करते हुए आया, जिसे अपनी नाबालिग सौतेली बेटी के साथ दुष्कर्म के आरोप में 20 साल की सजा दी गई थी। अदालत ने उसकी सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि अपराध की पुष्टि मेडिकल और फॉरेंसिक सबूतों से हुई है। मार्च 2016 में हुई इस घटना में पीड़िता की उम्र 12 वर्ष से कम थी और उसने शुरू में विस्तृत शिकायत दी थी, जिससे अभियोजन की प्रक्रिया शुरू हुई थी।
न्यायिक विवेक और बयान से पलटना
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने कहा कि बच्चा अपने बयान से डर, सुरक्षा की चिंता या पारिवारिक समर्थन खोने के डर से पलट सकता है। लेकिन उसे इस बोझ से मुक्त रखना जरूरी है कि वह अपराधी की रक्षा करे। न्यायालय ने यह भी कहा कि गवाही के दौरान दिख रही विरोधाभासी बातें पहले दर्ज बयान (धारा 164 CrPC के तहत) से ही स्पष्ट थीं। अतः ऐसी गवाही को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- POCSO कानून कुछ परिस्थितियों में आरोपी के खिलाफ आरोप की वैधानिक मान्यता देता है, जिससे अभियोजन को बल मिलता है।
- CrPC की धारा 164 मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान या स्वीकारोक्ति दर्ज करने से संबंधित है।
- बाल पीड़ितों को रक्षा, पुनर्वास और आश्रय प्रदान करना पुलिस और बाल कल्याण एजेंसियों की जिम्मेदारी है।
- बच्चे की गवाही में विरोधाभास होने पर भी यदि अन्य सबूत मौजूद हों, तो मुकदमा आगे बढ़ सकता है।
यह फैसला न केवल बाल यौन अपराधों के मामलों में न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक सशक्त कदम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायालय संवेदनशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण दोनों को अपनाकर पीड़ित की सुरक्षा और आरोपी की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।