दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का प्रयोग असफल: प्रदूषण नियंत्रण की नई राह की चुनौती

दिल्ली में कृत्रिम वर्षा का प्रयोग असफल: प्रदूषण नियंत्रण की नई राह की चुनौती

दिल्ली सरकार द्वारा वायु प्रदूषण से निपटने के लिए शुरू किया गया क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) प्रयोग अपेक्षित सफलता नहीं दिला सका। नमीयुक्त बादलों में नमक और सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर छिड़क कर बारिश उत्पन्न करने के इस प्रयास को वैज्ञानिक और तकनीकी कारणों से विफलता का सामना करना पड़ा। यह प्रयोग राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों में दो बार किया गया, लेकिन मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों ने वर्षा को उत्पन्न नहीं होने दिया।

क्लाउड सीडिंग का उद्देश्य और कार्यप्रणाली

दिल्ली में वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंचने के बाद यह प्रयोग प्रदूषण नियंत्रण रणनीति के एक हिस्से के रूप में किया गया था। कुल पांच प्रयासों की योजना थी, जिनमें सीएनजी से लैस विशेष Cessna विमान का उपयोग किया गया। यह विमान कानपुर और मेरठ से उड़ान भरकर खेकड़ा, बुराड़ी, करोल बाग और मयूर विहार जैसे क्षेत्रों पर क्लाउड सीडिंग के लिए तैनात किया गया।

वैज्ञानिक कारण जो वर्षा को रोक नहीं सके

प्रमुख कारण बादलों में पर्याप्त नमी की कमी था, जो मात्र 10–15% के आसपास मापी गई — जबकि प्रभावी कृत्रिम वर्षा के लिए यह 30% से अधिक होनी चाहिए। यद्यपि बादल दृश्य थे, परंतु उनमें ऊर्ध्वाधर विकास और तरल जल मात्रा पर्याप्त नहीं थी, जिससे फ्लेयर द्वारा वर्षा उत्प्रेरित नहीं हो सकी। प्रत्येक सीडिंग एजेंट का वजन 2 से 2.5 किलोग्राम था और इन्हें सही ढंग से तैनात किया गया, परंतु वायुमंडलीय प्रोफ़ाइल अनुकूल नहीं थी।

वायु गुणवत्ता पर आंशिक प्रभाव

हालांकि प्रयोग से मापनीय वर्षा नहीं हुई, फिर भी कुछ क्षेत्रों में PM2.5 और PM10 प्रदूषकों में मामूली गिरावट देखी गई। मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में PM2.5 का स्तर 221 से 207 और PM10 का स्तर 207 से 177 तक घटा। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में क्रमशः 0.1 मिमी और 0.2 मिमी की अल्पवर्षा दर्ज की गई, जो प्रयोग का सीमित स्थानीय प्रभाव दर्शाती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • क्लाउड सीडिंग में सिल्वर आयोडाइड या नमक कणों का छिड़काव कर संक्षेपण और वर्षा उत्पन्न की जाती है।
  • दिल्ली का यह अभियान भारत का पहला शहरी वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु क्लाउड सीडिंग प्रयास था।
  • प्रयुक्त विमान Cessna, कानपुर और मेरठ से उड़ान भरकर दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में तैनात हुआ।
  • 30% से कम आर्द्रता स्तर होने पर कृत्रिम वर्षा की संभावना अत्यंत कम हो जाती है।

भविष्य की संभावनाएं और सबक

इस प्रयोग की सीमित सफलता यह स्पष्ट करती है कि क्लाउड सीडिंग पूरी तरह मौसमीय स्थितियों पर निर्भर करती है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि भविष्य में ऐसे प्रयास तभी किए जाएं जब उचित आर्द्रता, तापमान प्रवणता और बादलों का प्रकार अनुकूल हों। साथ ही यह भी स्पष्ट होता है कि कृत्रिम वर्षा तत्काल प्रभाव तो डाल सकती है, परंतु इसे दीर्घकालिक समाधान नहीं माना जा सकता।
दिल्ली में प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए उत्सर्जन कटौती, पराली जलाना रोकना, और वाहन प्रदूषण नियंत्रण जैसे ठोस दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रित करना अनिवार्य है। क्लाउड सीडिंग एक तकनीकी उपाय हो सकता है, लेकिन इसकी सफलता प्रकृति की अनुकूलता पर निर्भर करती है।

Originally written on October 29, 2025 and last modified on October 29, 2025.

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