दक्षिण भारत में टैपिओका फसलों की वापसी: परजीवी ततैया ने बचाई किसानों की उम्मीदें

दक्षिण भारत में टैपिओका फसलों की वापसी: परजीवी ततैया ने बचाई किसानों की उम्मीदें

दक्षिण भारत के किसानों के लिए यह बड़ी राहत की खबर है। दो वर्ष पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के नेशनल ब्यूरो ऑफ एग्रीकल्चरल इंसेक्ट रिसोर्सेज (NBAIR) के वैज्ञानिकों ने टैपिओका (कसावा) फसल को एक विनाशकारी कीट से बचाने के लिए एक सूक्ष्म परजीवी ततैया (Anagyrus lopezi) को खेतों में छोड़ा था। आज, यह जैविक नियंत्रण रणनीति पूरी तरह सफल रही है — और फसलें फिर से अपनी पुरानी उत्पादकता पर लौट आई हैं।

कीट से संकट में आई थी टैपिओका की खेती

टैपिओका या कसावा भारत में लगभग 1.73 लाख हेक्टेयर में उगाई जाती है, जिसमें से 90% उत्पादन तमिलनाडु और केरल से आता है। महामारी के बीच अप्रैल 2020 में जब कैसावा मिलीबग नामक विदेशी कीट केरल के त्रिशूर ज़िले में पहुँचा, तो हालात तेजी से बिगड़ गए।2021 तक 1.43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र इस कीट से प्रभावित हो गया और तमिलनाडु के कुछ इलाकों में उपज घटकर 35 टन से मात्र 5–12 टन प्रति हेक्टेयर रह गई। यह कीट पौधों का रस चूसकर पत्तों को मोड़ देता, पौधों की वृद्धि रोक देता और कंद के निर्माण को प्रभावित करता।
रासायनिक छिड़काव का विकल्प मौजूद था, लेकिन वह महंगा, पर्यावरण के लिए हानिकारक और छोटे किसानों के लिए अस्थिर था। ऐसे में ICAR–NBAIR के वैज्ञानिकों ने क्लासिकल बायोलॉजिकल कंट्रोल का रास्ता चुना — यानी कीट के प्राकृतिक शत्रु को उसके मूल क्षेत्र से लाकर पारिस्थितिक संतुलन बहाल करना।

Anagyrus lopezi: प्रकृति का सटीक समाधान

वैज्ञानिकों ने Anagyrus lopezi नामक सूक्ष्म ततैया की पहचान की, जो विशेष रूप से कैसावा मिलीबग पर परजीवी की तरह हमला करता है। यह ततैया कीट के भीतर अपने अंडे देती है और विकसित होने वाले लार्वा उसे भीतर से खा जाते हैं, जिससे कीट स्वाभाविक रूप से मर जाता है — बिना किसी अन्य फसल या लाभकारी कीट को नुकसान पहुँचाए।
NBAIR ने इस ततैया को पश्चिम अफ्रीका के बेनिन स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर (IITA) से आयात किया। क्वारंटीन जांचों में इसकी सुरक्षा और होस्ट स्पेसिफिसिटी की पुष्टि के बाद, मार्च 2022 में इसे तमिलनाडु के सलेम ज़िले के यथापुर क्षेत्र में लगभग 300 किसानों के साथ पहली बार छोड़ा गया।
इसके बाद इसे तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के 500 से अधिक खेतों में बड़े पैमाने पर फैलाया गया। 25 से अधिक प्रशिक्षण शिविरों, 3 उपग्रह उत्पादन केंद्रों और 2 लाख से अधिक ततैयों के वितरण के माध्यम से किसानों को इस पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया।

सफलता की मिसाल: रासायनिक मुक्त पुनर्जागरण

2023–24 तक परिणाम अद्भुत रहे। पहले प्रभावित ज़िलों — जैसे सलेम, नामक्कल और धर्मपुरी — में उपज फिर से 35 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुँच गई। मिलीबग की आबादी अब स्वाभाविक रूप से नियंत्रण में है और किसानों को रासायनिक दवाओं पर निर्भर नहीं रहना पड़ रहा।
NBAIR की टीम, जिसमें संपत कुमार एम., एम. मोहन, ए. एन. शैलेशा, सुनील जोशी, अंकिता गुप्ता और एस. एन. सुशील शामिल हैं, अब भी इस ततैया के प्रसार और दीर्घकालिक प्रभाव की निगरानी कर रही है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Anagyrus lopezi एक परजीवी ततैया है जो केवल कैसावा मिलीबग पर हमला करती है।
  • कसावा (टैपिओका) भारत में लगभग 1.73 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है।
  • तमिलनाडु और केरल देश के कुल टैपिओका उत्पादन का 90% हिस्सा देते हैं।
  • इस कार्यक्रम ने 1.43 लाख हेक्टेयर प्रभावित क्षेत्र को रासायनिक रहित नियंत्रण में लाया।

यह पहल भारत में जैविक कीट नियंत्रण की एक प्रेरक मिसाल बन गई है।

Originally written on October 24, 2025 and last modified on October 24, 2025.

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