दक्षिण भारत में जैव विविधता के लिए संकट बना ‘सेना स्पेक्टाबिलिस’: थोलपेट्टी में पुनर्स्थापन की नई शुरुआत

दक्षिण अमेरिका से लाया गया पेड़ Senna spectabilis कभी दक्षिण भारत के वनों में छाया और सुंदरता के लिए लगाया गया था, लेकिन अब यह भारत की सबसे विनाशकारी पारिस्थितिक भूलों में से एक बन चुका है। केरल का राज्य पुष्प कनिक्कोन्ना (Cassia fistula) से इसकी समानता ने इसे लोकप्रिय बना दिया, पर अब यह नीलगिरि जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की पारिस्थितिकी को गहरे स्तर पर प्रभावित कर रहा है।

‘सेना’ का विनाशकारी प्रभाव

  • Senna spectabilis तेजी से बढ़ता है और घने, बंजर झाड़-झंखाड़ बनाता है, जो मूल प्रजातियों को खत्म कर देता है।
  • यह मिट्टी की रासायनिक संरचना बदल देता है और घास व झाड़ियों को समाप्त कर देता है — जिससे हिरण, गौर आदि शाकाहारी जीवों के लिए भोजन की कमी हो जाती है।
  • परिणामस्वरूप, बाघ और हाथी जैसे बड़े शिकारी और जानवर मानव बस्तियों की ओर आने लगते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है।

थोलपेट्टी मॉडल: भारत का पहला वैज्ञानिक और समुदाय-आधारित उन्मूलन प्रयास

केरल के वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के थोलपेट्टी क्षेत्र में, भारत का पहला वैज्ञानिक और समुदाय-संचालित ‘सेना’ उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया गया है:

  • 383 एकड़ क्षेत्र से 46,450 पेड़ जड़ सहित उखाड़े गए, जिससे पुनरुत्पत्ति की संभावना खत्म हो सके।
  • कुल 560 एकड़ में पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन किया गया, जहां दशकों बाद घास, औषधियाँ, पक्षी और हाथियों की वापसी देखी जा रही है।

इस प्रयास के पीछे Forest First Samithi, केरल वन विभाग और कुरीचिया व कट्टुनायका जनजातियों की साझेदारी है। इन्हें केवल श्रमिक नहीं बल्कि पुनर्स्थापन के संरक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया गया।
एक समुद्री अभियंता आनंद ए द्वारा विकसित किए गए विशेष हाथ से चलने वाले उखाड़ने वाले उपकरण ने इस अभियान को और अधिक प्रभावशाली बना दिया।

पुनरुद्धार के संकेत

  • 80 से अधिक देशी वृक्ष प्रजातियाँ पुनः लगाई गईं।
  • 15 देशी घास प्रजातियाँ स्वाभाविक रूप से लौटीं।
  • 184 पक्षी प्रजातियाँ सेनाहीन क्षेत्रों में देखी गईं।
  • हाथी और हिरण जैसे बड़े स्तनधारी अब फिर से लौट रहे हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Senna spectabilis हर मौसम में 6,000 बीज तक उत्पन्न करता है, जो 10 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं।
  • इस पेड़ के छिलके गए ठूँठ भी हफ्तों में पुनः अंकुरित हो जाते हैं।
  • एक 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, वायनाड के 23% क्षेत्र में ‘सेना’ फैल चुका था, जो अब 40% से भी अधिक माना जा रहा है।
  • तमिलनाडु और कर्नाटक भी अब नीलगिरि अंचल में सेना नियंत्रण योजना लागू करने पर विचार कर रहे हैं।
  • इस पेड़ की लकड़ी से पेपर पल्प बनाने के प्रयोग किए जा रहे हैं, पर जड़ न उखाड़ने पर यह प्रभावी नहीं होगा।

पूरे भारत के लिए चेतावनी

केरल से बाहर, आंध्र प्रदेश, गोवा और महाराष्ट्र से भी सेना के प्रसार की रिपोर्ट आ रही हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो ये राज्य भी वही गलती दोहरा सकते हैं।
जैवविविधता कार्यकर्ता मीरा चंद्रन के अनुसार, “यह केवल एक खरपतवार की बात नहीं है। भारत में लैंटाना, यूपेटोरियम, अकासिया और सेना जैसे आक्रामक पौधे चुपचाप हमारी पारिस्थितिकी को मिटा रहे हैं।”
थोलपेट्टी की कहानी एक सबक है — कि वन पुनर्स्थापन केवल पेड़ लगाने के बारे में नहीं, बल्कि गलत पेड़ को उखाड़ने की हिम्मत रखने के बारे में है। यही वह दृष्टिकोण है जो भारत के वनों को दूसरा जीवन दे सकता है।

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