दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक में बढ़ती सैन्य स्पर्धा: रणनीतिक प्राथमिकताओं और स्थिरता की चुनौतियाँ

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की 2025 की रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक सैन्य खर्च अब ठंडी जंग के बाद के सबसे उच्च स्तर पर है। खासतौर पर दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र इस सैन्यीकरण की अग्रिम पंक्ति में हैं, जहां भू-राजनीतिक अविश्वास, परमाणु प्रतिस्पर्धा, और क्षेत्रीय प्रभुत्व की होड़ सैन्य बजटों को लगातार बढ़ावा दे रही है।

वैश्विक सैन्य खर्च में निरंतर वृद्धि के प्रमुख कारण

  1. भू-राजनीतिक अस्थिरता: रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-गाज़ा और इज़राइल-ईरान संघर्ष जैसे क्षेत्रीय युद्धों ने सैन्य तैयारियों को अनिवार्य बना दिया है।
  2. परमाणु हथियारों की होड़: चीन, भारत और पाकिस्तान में परमाणु हथियारों का विस्तार और परिष्करण जारी है, जिससे दीर्घकालिक रणनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है।
  3. संपर्कहीनता और पारदर्शिता की कमी: क्षेत्रीय शक्तियों के बीच संचार तंत्रों की अनुपस्थिति अनजाने टकराव के जोखिम को बढ़ाती है।
  4. प्रौद्योगिकीकरण और स्वदेशी रक्षा उत्पादन: भारत सहित कई देश अब रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने पर जोर दे रहे हैं, जिससे रक्षा खर्च में वृद्धि हो रही है।

भारत की बढ़ती रक्षा व्यय और उसकी रणनीतिक प्राथमिकताएं

भारत का सैन्य खर्च 2024 में $86.1 बिलियन तक पहुंच गया — जो वैश्विक स्तर पर पांचवां सबसे बड़ा है। इसका प्राथमिक उद्देश्य दो मोर्चों पर सुरक्षा बनाए रखना है: चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर और पाकिस्तान से आतंकवाद संबंधित खतरे से निपटना।
भारत अब समुद्री क्षेत्र में भी अपनी भूमिका को व्यापक बनाने पर ध्यान दे रहा है, खासकर हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सुरक्षा प्रदाता की भूमिका निभाने की दिशा में। भारतीय नौसेना के आधुनिकीकरण के लिए 2025–26 के बजट में $21 बिलियन से अधिक का आवंटन किया गया है।

इंडो-पैसिफिक में भारत की सामरिक संतुलन नीति

  • चीन के खिलाफ संतुलन: दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता, ताइवान पर बढ़ते दावे, और हिंद महासागर में बंदरगाह निर्माण ने क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ा है।
  • मल्टी-एलायंस रणनीति: भारत क्वाड (QUAD), मालाबार नौसैनिक अभ्यास और ASEAN साझेदारियों के माध्यम से बहुपक्षीय सहयोग को मजबूत कर रहा है।
  • आत्मनिर्भर भारत मिशन: रक्षा उत्पादन में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना भारत की रणनीतिक स्वतंत्रता का मूल स्तंभ बनता जा रहा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • वैश्विक रक्षा खर्च 2024 में $2.72 ट्रिलियन तक पहुंचा (SIPRI)
  • भारत का सैन्य बजट: $86.1 बिलियन | पाकिस्तान: $10.2 बिलियन
  • चीन का अनुमानित परमाणु भंडार: 500–600 | भारत-पाकिस्तान भी अपनी परमाणु क्षमताओं का विस्तार कर रहे हैं
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में 10 में से 7 सबसे बड़ी सेनाएं स्थित हैं

विश्वास निर्माण के उपाय (Confidence Building Measures – CBMs)

  • सीमा वार्ता और सैन्य हॉटलाइन: भारत-चीन और भारत-पाक के बीच समर्पित संचार चैनलों की स्थापना अनिवार्य है।
  • पूर्व सूचना प्रणाली: सैन्य अभ्यासों की पूर्व घोषणा, पारदर्शिता में सुधार लाती है।
  • आपदा प्रतिक्रिया प्रशिक्षण: साझा मानवीय मिशनों में सहयोग, सैन्य विश्वास को बढ़ावा देता है।
  • IORA और ASEAN की भूमिका: इन बहुपक्षीय संस्थाओं को सशक्त बनाना क्षेत्रीय संवाद को औपचारिकता देगा।

इंडो-पैसिफिक और दक्षिण एशिया में दीर्घकालिक स्थिरता केवल सैन्य शक्ति पर नहीं, बल्कि संवाद, संयम और साझा जिम्मेदारी पर आधारित हो सकती है। रक्षा खर्च की बढ़ोत्तरी आवश्यक हो सकती है, लेकिन यदि वह पारदर्शिता और रणनीतिक संतुलन के बिना होती है, तो वह स्थिरता की जगह अस्थिरता का कारण बन सकती है।

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