थर्मल पावर प्लांट्स में बायोमास और कचरे से बने चारकोल का अनिवार्य सह-दहन नीति

थर्मल पावर प्लांट्स में बायोमास और कचरे से बने चारकोल का अनिवार्य सह-दहन नीति

भारत सरकार ने कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास पेलेट्स और नगर ठोस अपशिष्ट (MSW) से निर्मित टोरेफाइड चारकोल के सह-दहन (Co-firing) को अनिवार्य करने वाली व्यापक नीति लागू की है। इस पहल का उद्देश्य कृषि अवशेषों और शहरी कचरे के बेहतर उपयोग के साथ-साथ प्रदूषण में कमी लाना और राष्ट्रीय स्वच्छता व जलवायु लक्ष्यों को सशक्त बनाना है।

नई नीति के प्रमुख प्रावधान

नई नीति के तहत दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के सभी थर्मल पावर प्लांट्स को वर्ष 2025–26 से अपने कोयले में 5% बायोमास पेलेट्स और अतिरिक्त 2% बायोमास या नगर कचरे से बने टोरेफाइड चारकोल का मिश्रण करना अनिवार्य होगा। एनसीआर से बाहर स्थित संयंत्रों के लिए 5% बायोमास या एमएसडब्ल्यू आधारित चारकोल का सह-दहन अनिवार्य किया गया है। यह नीति पहले की सभी दिशा-निर्देशों को प्रतिस्थापित करती है और सह-दहन के दायरे को नगरपालिका कचरे से बने ईंधनों तक विस्तारित करती है।

संसाधन उपलब्धता और मिश्रण की आवश्यकताएँ

भारत हर वर्ष विशाल मात्रा में कृषि अपशिष्ट और फसल अवशेष उत्पन्न करता है, जिनमें विशेष रूप से पराली और भूसा प्रमुख हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों से प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख टन ठोस कचरा निकलता है, जिसमें से बड़ी मात्रा अप्रबंधित रहती है। नई नीति एनसीआर क्षेत्र में स्थित संयंत्रों के लिए फसल अवशेषों पर आधारित पेलेट्स के उपयोग को प्राथमिकता देती है। साथ ही, एक बहु-संस्थागत समिति के माध्यम से छूट और समीक्षा की व्यवस्था भी की गई है।

परिचालन संभावनाएँ और उद्योग की चिंताएँ

सार्वजनिक क्षेत्र के अनुभव बताते हैं कि टोरेफाइड एमएसडब्ल्यू चारकोल को मौजूदा कोयला प्रणालियों में तकनीकी रूप से शामिल किया जा सकता है। हालांकि, निजी क्षेत्र ने चेताया है कि एमएसडब्ल्यू आधारित ईंधनों में उच्च क्लोरीन स्तर, अस्थिर ऊष्मीय मान (कैलोरिफिक वैल्यू) और अशुद्धियों के कारण स्लैगिंग, जंग और अनियंत्रित दहन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। साथ ही, डायॉक्सिन्स और भारी धातुओं जैसे अतिरिक्त प्रदूषकों के लिए बेहतर निगरानी और नियंत्रण प्रणालियों की आवश्यकता होगी।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • एनसीआर संयंत्रों के लिए सह-दहन अनुपात: 5% बायोमास + 2% एमएसडब्ल्यू चारकोल
  • भारत में दैनिक ठोस कचरा उत्पादन: लगभग 1,50,000 टन
  • अतिरिक्त लागत समायोजन: बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 62 या 63 के अंतर्गत
  • टोरेफाइड चारकोल का निर्माण: नियंत्रित ताप पर बायोमास या कचरे की गर्मी प्रक्रिया से

कचरा-से-ऊर्जा संयंत्रों से सीख और भविष्य की आवश्यकता

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कचरा बिना पृथक्करण (unsegregated) के टोरेफिकेशन के लिए उपयोग किया गया, तो “वेस्ट-टू-एनर्जी” संयंत्रों जैसी समस्याएँ जैसे कि अपूर्ण दहन, विषैले उत्सर्जन और निम्न गुणवत्ता वाला ईंधन दोहराई जा सकती हैं। इसलिए इस नीति की सफलता के लिए स्रोत स्तर पर कचरा पृथक्करण, ईंधन गुणवत्ता मानक, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन और सतत निगरानी अत्यंत आवश्यक हैं। यदि यह पारिस्थितिकी तंत्र राष्ट्रीय बायोमास मिशनों की तरह सशक्त रूप में विकसित किया गया, तो यह नीति स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम सिद्ध होगी।

Originally written on November 19, 2025 and last modified on November 19, 2025.

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