तरंगों की दुनिया में क्रांति: चिप पर सुनामी जैसी nonlinear लहरें
कल्पना कीजिए एक सुनामी की — एक विशाल लहर जो महासागर को पार कर सकती है और तटों पर विनाश ला सकती है। अब एक और प्रकार की लहर की कल्पना कीजिए: सॉलिटॉन। यह एक ऐसी अकेली लहर होती है जो अपनी आकृति और गति को बिना बदले, बहुत लंबी दूरी तक बनाए रखती है। ये दोनों लहरें एक विशेष प्रकार की भौतिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं, जिसे वैज्ञानिक गैर-रैखिक तरंग गतिकी (nonlinear wave dynamics) कहते हैं।
पारंपरिक प्रयोगों की सीमाएँ और नई चुनौती
अब तक वैज्ञानिक इन तरंगों को समझने के लिए सैकड़ों मीटर लंबे जल टैंकों — वेव फ्लूम — का उपयोग करते रहे हैं। लेकिन इन टैंकों की एक सीमा है: वे प्राकृतिक आपदाओं जैसी चरम स्थितियाँ उत्पन्न नहीं कर सकते। वास्तव में, प्राकृतिक nonlinear तरंगों में छोटी-सी परिस्थिति परिवर्तन अत्यधिक और अप्रत्याशित प्रभाव ला सकता है — यही इनका nonlinear स्वभाव है।
इसी चुनौती से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड के वैज्ञानिकों की एक टीम ने चिप-स्केल पर दुनिया का सबसे छोटा वेव फ्लूम बनाया है — एक माइक्रोस्कोपिक प्रयोगशाला जो तरंगों के जटिल व्यवहार को प्रदर्शित कर सकती है।
सुपरफ्लुइड हिलियम और लहरों का निर्माण
इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने सुपरफ्लुइड हिलियम का उपयोग किया — एक ऐसा पदार्थ जो अत्यंत ठंडे तापमान पर घर्षण-रहित और बिना चिपके प्रवाहित होता है। इस द्रव की 6.7-नैनोमीटर पतली परत को एक सिलिकॉन बीम पर बिछाया गया। जब इस बीम पर लेज़र डाली गई, तो सुपरफ्लुइड उसके गर्म भाग की ओर बहा — इसे फाउंटेन इफेक्ट कहते हैं।
इसी लेज़र की तीव्रता को बदलते हुए वैज्ञानिकों ने बेहद शक्तिशाली तरंगें उत्पन्न कीं — और फिर उन तरंगों के व्यवहार का अवलोकन भी किया। जैसे-जैसे तरंगें गुज़रतीं, वे बीम के प्रकाश को प्रभावित करतीं, जिससे तरंगों की ऊँचाई और गति को अत्यंत सटीकता से मापा जा सका।
अवलोकित अद्भुत घटनाएँ
इस अद्भुत प्रयोग में वैज्ञानिकों ने कई ऐसे तरंगीय व्यवहार देखे जिन्हें पहले केवल सिद्धांत में ही जाना गया था:
- पीछे झुकती लहरें: सामान्य पानी की लहरों में चोटी (crest) तेजी से चलती है, जिससे लहर आगे झुकती है। लेकिन इस सुपरफ्लुइड में गर्त (trough) तेजी से चलती है, जिससे लहर पीछे झुकती है।
- शॉक फ्रंट: अत्यधिक ऊर्जा वाली तरंगों में सामने का भाग लगभग खड़ा हो गया — इसे शॉक फ्रंट कहते हैं, जो तीव्र उर्जा का संकेत है।
- सॉलिटॉन विखंडन: जब एक बड़ी तरंग छोटे-छोटे एकाकी तरंगों में टूटती है, तो इसे सॉलिटॉन फिशन कहते हैं। वैज्ञानिकों ने एक तरंग से 12 तक सॉलिटॉन बनते देखे।
- हॉट सॉलिटॉन: ये तरंगें सतह से नीचे की ओर जाती थीं, और उनका तापमान आसपास की सतह से थोड़ा अधिक था। यह एक अप्रत्याशित लेकिन सिद्धांत से मेल खाती खोज थी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सॉलिटॉन ऐसी तरंगें हैं जो समय और दूरी के साथ अपनी आकृति नहीं बदलतीं।
- सुपरफ्लुइड हिलियम में फाउंटेन इफेक्ट होता है — यह गर्मी की ओर बहता है, सामान्य द्रवों के विपरीत।
- तरंगों के व्यवहार को Korteweg–De Vries (KdV) समीकरण से समझा जाता है, जो छोटे गहराई वाले द्रवों के लिए उपयुक्त है।
- प्रयोग में प्रयोग हुआ Ursell Number, यह तरंगों की nonlinear प्रकृति को परिभाषित करता है।
छोटे पैमाने पर बड़ी उपलब्धि
इस सूक्ष्म प्रणाली के कई लाभ हैं। पहले, यह प्रणाली पारंपरिक टैंकों की तुलना में हज़ारों गुना तेज है — घटनाएँ मिलीसेकंड में घटती हैं। दूसरे, वैज्ञानिक तरंगों को बारीकी से नियंत्रित कर सकते हैं — लेज़र की तीव्रता और तरल की मोटाई बदलकर। और तीसरे, इस तकनीक से प्रकाश और गति की पारस्परिक क्रिया — ऑप्टोमैकेनिक्स — का भी अध्ययन होता है।