डीजल में आइसोब्यूटेनॉल मिलाने की योजना: संभावनाएं और चुनौतियाँ

भारत सरकार जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगातार नए प्रयोग कर रही है। इसी कड़ी में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 11 सितंबर को घोषणा की कि ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI) डीजल में आइसोब्यूटेनॉल मिलाने की संभावनाओं का अध्ययन कर रहा है। यह पहल तब सामने आई है जब डीजल में एथनॉल मिलाने के प्रयास असफल रहे।
आइसोब्यूटेनॉल और डीजल का मिश्रण: क्यों जरूरी?
आइसोब्यूटेनॉल एक प्रकार का अल्कोहलिक यौगिक है जो ज्वलनशील होता है और पेंटिंग सहित कई उद्योगों में विलायक (solvent) के रूप में प्रयोग होता है। एथनॉल की तुलना में आइसोब्यूटेनॉल की भौतिक और रासायनिक विशेषताएँ डीजल के साथ बेहतर मिश्रण की संभावना प्रदान करती हैं। ARAI के निदेशक रेझी माथाई के अनुसार, आइसोब्यूटेनॉल के लिए किसी पूरक यौगिक की आवश्यकता नहीं है और इसका फ्लैश पॉइंट (वाष्प बनने की न्यूनतम तापमान) भी एथनॉल से अधिक है, जिससे सुरक्षा के लिहाज से यह अधिक उपयुक्त माना जा रहा है।
उत्पादन की आर्थिकता और तकनीकी चुनौतियाँ
आइसोब्यूटेनॉल का उत्पादन वही कच्चा माल (जैसे गन्ना रस, शीरा, अनाज) से किया जा सकता है जिससे एथनॉल बनाया जाता है। ISMA के महानिदेशक दीपक बल्लानी के अनुसार, मौजूदा चीनी मिलों में थोड़े बहुत बदलाव कर के आइसोब्यूटेनॉल और एथनॉल दोनों का उत्पादन किया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए किण्वन टैंक और आसवन इकाई को कुछ हद तक पुनःस्थापित करना होगा। एक उदाहरण के रूप में, 150 केएलपीडी उत्पादन क्षमता वाला संयंत्र बिना अधिक बदलाव के 125 केएलपीडी एथनॉल और 20 केएलपीडी आइसोब्यूटेनॉल बना सकता है।
तकनीकी चिंताएँ और संभावित समाधान
ऑटोमोबाइल विशेषज्ञ मैथ्यू अब्राहम के अनुसार, डीजल के साथ आइसोब्यूटेनॉल के मिश्रण में दो मुख्य चिंताएँ हैं — कम सेटन संख्या (cetane number) और मिश्रण की एकरूपता (miscibility)। सेटन संख्या, ईंधन की दहन गुणवत्ता का मानक होता है, और इसकी कमी इंजन में ‘नॉकिंग’ जैसी समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। हालांकि, उचित योजकों (additives) के प्रयोग से सेटन संख्या को संतुलित किया जा सकता है। इसके अलावा, बायोडीजल के मिलाने से मिश्रण की स्थिरता भी बेहतर की जा सकती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सेटन संख्या: डीजल ईंधन की दहन क्षमता को मापने का एक मानक, जितनी अधिक सेटन संख्या होगी, दहन उतना ही प्रभावी होगा।
- आइसोब्यूटेनॉल का फ्लैश पॉइंट: एथनॉल की तुलना में अधिक होता है, जिससे यह अधिक सुरक्षित विकल्प बनता है।
- इथेनॉल अधिशेष: वर्तमान में भारत में इथेनॉल का उत्पादन आवश्यकता से अधिक है, और इसका उपयोग ईंधन मिश्रण में किया जा रहा है।
- ARAI की भूमिका: ARAI, भारत सरकार के अधीन एक प्रमुख शोध संस्थान है जो वाहनों और ईंधनों के मानकों और प्रयोगों पर काम करता है।