झारखंड में पहली टाइगर सफारी की योजना: पर्यटन बढ़ावा या आदिवासी अधिकारों का हनन?

‘टाइगर सफारी’ शब्द वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में परिभाषित नहीं है। हालांकि, 2012 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में इसका ज़िक्र किया गया। इन सफारियों का उद्देश्य बाघों को प्राकृतिक परिवेश में दिखाने के लिए संरक्षित घेरे बनाना है, जिससे पर्यटकों को बाघ देखने की अधिक संभावना मिले — जैसा कि सामान्य जंगल सफारी में संयोग पर निर्भर होता है।
2016 में NTCA ने टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में केवल बचाए गए, संघर्षग्रस्त या अनाथ बाघों के लिए सफारी की अनुमति दी थी। 2019 में संशोधन कर चिड़ियाघरों से लाए गए बाघों को भी इसमें शामिल करने की अनुमति दी गई।

झारखंड की योजना क्या है?

झारखंड सरकार पलामू टाइगर रिज़र्व (PTR) के बारवाडीह पश्चिम वन क्षेत्र के सिरे (fringe) पर लगभग 150 हेक्टेयर में पहली टाइगर सफारी स्थापित करना चाहती है।

  • यह क्षेत्र कोर और बफर ज़ोन से बाहर है, जिससे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
  • सफारी में केवल घायल, संघर्षग्रस्त या अनाथ बाघ होंगे — कोई जंगली जानवर नहीं होगा।
  • परियोजना से करीब 200 स्थानीय लोगों को नौकरी देने की बात कही गई है — गाइड, रख-रखाव और सहायक कर्मचारी के रूप में।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में टाइगर सफारी का विचार पहली बार 2012 में NTCA द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
  • सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2024 में निर्देश दिया कि टाइगर सफारी कोर और बफर ज़ोन से बाहर होनी चाहिए।
  • सफारी परियोजनाएं अब सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA) द्वारा अनुमोदित की जाती हैं, जो जानवरों की भलाई और ढांचे की निगरानी करता है।
  • झारखंड की सफारी परियोजना अभी विचाराधीन है और इसके लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जाएगी।

क्या हैं प्रमुख चिंताएं?

  1. आदिवासी विस्थापन: सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेता चिंतित हैं कि ऐसी परियोजनाएं पारंपरिक वन निवासियों की भूमिका को मिटाकर उन्हें ‘खतरा’ के रूप में दर्शाती हैं। हालांकि सरकारी अधिकारियों का कहना है कि परियोजना वाले क्षेत्र में कोई बस्ती नहीं है, फिर भी ग्राम सभा की सहमति आवश्यक है।
  2. जीविका पर प्रभाव: सफारी परियोजना के चलते पशु चराई, लकड़ी या अन्य वनोपज संग्रह पर रोक लग सकती है, जिससे आदिवासियों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।
  3. कानूनी प्रक्रिया: वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत किसी भी परियोजना को ग्राम सभा की पूर्व अनुमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता।

झारखंड में प्रस्तावित टाइगर सफारी पर्यटन को बढ़ावा देने और वन्यजीव संरक्षण के उद्देश्य से की जा रही एक महत्वाकांक्षी पहल है। हालांकि, इसका क्रियान्वयन तभी न्यायसंगत होगा जब यह परियोजना स्थानीय समुदायों की सहमति, आजिविका की सुरक्षा, और वन्यजीव संरक्षण के सिद्धांतों का सम्मान करते हुए आगे बढ़े। अन्यथा, यह एक और पर्यावरणीय परियोजना बन जाएगी जो आदिवासियों के अधिकारों की अनदेखी करती है।

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