ज्ञान भारतम मिशन: पांडुलिपियों के संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल
भारत की सांस्कृतिक धरोहर में पांडुलिपियाँ एक अनमोल धरोहर हैं, जो हमारे ऐतिहासिक, धार्मिक, भाषाई और साहित्यिक ज्ञान का स्रोत हैं। इन्हीं धरोहरों के संरक्षण, डिजिटलीकरण और प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा “ज्ञान भारतम मिशन” की शुरुआत की गई है। यह मिशन भारत की पांडुलिपि विरासत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
प्रमुख संस्थानों से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर
इस मिशन के तहत, देशभर के लगभग 20 प्रमुख संस्थान शनिवार को पांडुलिपियों के संरक्षण, रखरखाव और डिजिटलीकरण के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करेंगे। इसके अतिरिक्त, आगामी कुछ दिनों में 30 और संस्थान इस प्रक्रिया में शामिल होंगे। इन संस्थानों में एशियाटिक सोसाइटी कोलकाता, कश्मीर विश्वविद्यालय श्रीनगर, हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयागराज, और गवर्नमेंट ओरिएंटल मैन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी चेन्नई जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं।
मिशन का उद्देश्य और कार्यप्रणाली
ज्ञान भारतम मिशन की शुरुआत इस वर्ष के केंद्रीय बजट में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत की पांडुलिपियों को पहचानना, दस्तावेजीकरण करना, उनका संरक्षण करना, डिजिटलीकरण करना और एक राष्ट्रीय डिजिटल भंडार (National Digital Repository – NDR) के माध्यम से इन्हें विश्व स्तर पर साझा करना है।
संस्थानों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है — क्लस्टर केंद्र और स्वतंत्र केंद्र। क्लस्टर केंद्र न केवल अपनी पांडुलिपियों पर कार्य करेंगे, बल्कि उनके साथ जुड़े अन्य संस्थानों (अधिकतम 20) की जिम्मेदारी भी निभाएंगे। वहीं, स्वतंत्र केंद्र केवल अपने संग्रह पर ही कार्य करेंगे।
सहयोग और समर्थन की रूपरेखा
ज्ञान भारतम मिशन इन केंद्रों को समग्र रूप से मार्गदर्शन, निगरानी, वित्तीय सहायता और आवश्यक उपकरण प्रदान करेगा। इसके तहत सर्वेक्षण और सूचीकरण, संरक्षण एवं क्षमता निर्माण, तकनीक और डिजिटलीकरण, भाषाविज्ञान और अनुवाद, अनुसंधान, प्रकाशन और जन-जागरूकता जैसे विविध कार्यों का संचालन किया जाएगा।
प्रत्येक केंद्र को एक “ज्ञान भारतम सेल” गठित करने के लिए कहा गया है, जो मिशन के विभिन्न कार्यक्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले सदस्यों से युक्त होगा। यह सेल स्वैच्छिक सेवा की भावना से काम करेगा और केंद्र तथा मिशन के बीच प्रभावी संचार का माध्यम बनेगा।
वित्तीय प्रबंधन और किस्तों में सहायता
मिशन के तहत वित्तीय सहायता चरणबद्ध रूप से दी जाएगी। कुल बजट का 70% पहली किस्त के रूप में तब मिलेगा जब वार्षिक कार्ययोजना स्वीकृत हो जाएगी। शेष 30% सहायता कार्य की प्रगति रिपोर्ट, वित्तीय विवरण और उपयोगिता प्रमाणपत्र (UCs) के प्रस्तुत होने के बाद दी जाएगी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पांडुलिपियों का संग्रह: भारत में लगभग 50 लाख से अधिक पांडुलिपियाँ विभिन्न संस्थानों और निजी संग्रहों में संरक्षित हैं, जो विश्व में सर्वाधिक हैं।
- राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन: इससे पूर्व 2003 में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की स्थापना की गई थी, जिसे IGNCA द्वारा संचालित किया गया।
- डिजिटलीकरण का उद्देश्य: डिजिटलीकरण से न केवल पांडुलिपियों की रक्षा होती है, बल्कि शोध और अध्ययन के लिए भी उन्हें सरलता से उपलब्ध कराया जा सकता है।
- एशियाटिक सोसाइटी, कोलकाता: यह भारत की सबसे पुरानी विद्वत संस्थाओं में से एक है, जिसकी स्थापना 1784 में हुई थी।
भारत की ज्ञान परंपरा को संरक्षित करने की यह पहल न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में सहायक होगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी भारत की गूढ़ परंपराओं और ज्ञान की विविधता से परिचित कराएगी।