जैव विविधता संरक्षण में नई पहल: उत्तर प्रदेश, सिक्किम और महाराष्ट्र को NBA से फंड
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) ने जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) को सशक्त बनाने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए उत्तर प्रदेश और सिक्किम की दो समितियों को ₹8.3 लाख तथा महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तीन समितियों को ₹1.36 करोड़ का फंड जारी किया है। यह राशि जैविक विविधता अधिनियम, 2002 के तहत “एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग” (ABS) ढांचे के अंतर्गत दी गई है।
उत्तर प्रदेश और सिक्किम की समितियों को सहायता
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के अकराबाद कौल तहसील स्थित नरो गांव की जैव विविधता प्रबंधन समिति और सिक्किम के अरितार स्थित लमपोखरी झील क्षेत्र की समिति को सीधे राज्य जैव विविधता बोर्डों के माध्यम से यह फंड हस्तांतरित किया गया।
नरो गांव में एक कंपनी ने लिग्नोसेलुलोजिक बायोमास से फर्मेंटेबल यौगिक तैयार करने हेतु फसल सामग्रियों का उपयोग किया, वहीं लमपोखरी झील क्षेत्र से मिट्टी और जल के नमूनों में पाए गए सूक्ष्मजीवों को शोध हेतु उपयोग में लाया गया। यह फंड इन स्थानीय संरक्षकों को उनके संसाधनों के सतत प्रबंधन और संरक्षण में नेतृत्व देने हेतु प्रदान किया गया है।
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में बड़ी वित्तीय सहायता
इससे पहले NBA ने महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तीन BMCs — सतारा जिले के साखरवाड़ी गांव, पुणे जिले के कुंजीरवाड़ी गांव और एटा जिले के कासगंज क्षेत्र — को कुल ₹1.36 करोड़ की सहायता प्रदान की। प्रत्येक समिति को ₹45.50 लाख मिले हैं। यह फंड एक कंपनी द्वारा जैविक संसाधनों — जैसे मिट्टी और औद्योगिक अपशिष्ट के नमूनों से प्राप्त सूक्ष्मजीवों — से फृक्टो-ओलिगोसेकेराइड्स जैसे व्यावसायिक उत्पाद बनाने के बदले दिया गया है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- जैविक विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 44 के तहत “एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग” तंत्र से यह फंड जारी किया गया है।
- उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले और सिक्किम के अरितार क्षेत्र की BMCs को ₹8.3 लाख की राशि प्रदान की गई।
- महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तीन समितियों को कुल ₹1.36 करोड़ की सहायता मिली।
- यह पहल भारत की राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्य-13 और 2024-2030 राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीति एवं कार्य योजना (NBSAP) से जुड़ी है।
स्थानीय संरक्षण प्रयासों को मिलेगा बल
यह वित्तीय सहायता जैव विविधता प्रलेखन, पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग और स्थानीय आजीविका को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। साथ ही, यह भारत के उस संकल्प को भी मजबूती देती है, जिसके तहत जैव संसाधनों के वाणिज्यिक उपयोग से प्राप्त लाभों का उचित और समान वितरण सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।