जैव विविधता के गहरे रहस्य: ‘ऑनियन पैटर्न’ से वैश्विक संरक्षण की नई दिशा

करीब दो शताब्दियों से जीवविज्ञानी पृथ्वी को विभिन्न जैव-भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित करते आए हैं, जहाँ प्रत्येक क्षेत्र की जैव विविधता उसकी भौगोलिक, जलवायु और ऐतिहासिक बाधाओं द्वारा निर्धारित होती है। लंबे समय तक यह माना जाता रहा कि प्रत्येक क्षेत्र के भीतर जैव विविधता की आंतरिक बनावट अद्वितीय होती है। लेकिन हाल ही में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन ने इस सोच को चुनौती दी है।

जैव विविधता में छिपा सार्वभौमिक पैटर्न

स्पेन, स्वीडन और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों द्वारा Nature Ecology & Evolution में प्रकाशित इस अध्ययन ने 30,000 से अधिक प्रजातियों—पक्षी, स्तनधारी, सरीसृप, उभयचर, किरण मछलियाँ, ड्रैगनफ्लाइ और वृक्ष—का विश्लेषण कर यह खोज की कि पृथ्वी पर जैव विविधता एक “ऑनियन” जैसे पैटर्न में व्यवस्थित है। इस पैटर्न में केंद्र में अत्यधिक समृद्ध, स्थानिक (endemic) और विशिष्ट जैव विविधता पाई जाती है, जो बाहरी परतों की ओर जाते-जाते घटती जाती है और अधिक मिश्रित व सामान्य प्रजातियों से युक्त हो जाती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अध्ययन ने पृथ्वी की सतह को समान आकार की इकाइयों में विभाजित कर हर यूनिट में पाई जाने वाली प्रजातियाँ दर्ज कीं।
  • Infomap नामक नेटवर्क विश्लेषण उपकरण का उपयोग कर समान जैविक संरचना वाले क्षेत्रों को समूहबद्ध किया गया।
  • अध्ययन में जैव विविधता के चार आयामों का विश्लेषण किया गया: प्रजाति समृद्धि, जैव संघ समानता, क्षेत्रीय उपस्थिति और स्थानिकता।
  • परिणामस्वरूप, दुनिया को सात दोहराए जाने वाले जैव-भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया।

जलवायु और जैव विविधता का संबंध

अध्ययन के अनुसार, 98% क्षेत्रीय संयोजन में किसी भी स्थान की जैव विविधता की परत को केवल तापमान और वर्षा के मॉडल के आधार पर भविष्यवाणी किया जा सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि केवल वही प्रजातियाँ किसी परत में जीवित रह सकती हैं जो वहाँ की पर्यावरणीय स्थितियों को सहन करने में सक्षम हैं।
CSIR-IHBT के वरिष्ठ वैज्ञानिक अमित चावला के अनुसार, यह अध्ययन यह दिखाता है कि किस प्रकार जैव विविधता क्षेत्रीय हॉटस्पॉट्स से बाहर की ओर फैलती है, और कैसे ऊंचाई या जलवायु जैसे पर्यावरणीय अवरोध कुछ प्रजातियों के प्रसार को नियंत्रित करते हैं।

संरक्षण नीति में नया दृष्टिकोण

जलवायु परिवर्तन के युग में यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है कि कौन-सी प्रजातियाँ कहाँ पाई जाती हैं और क्यों। हिमालय जैसे क्षेत्रों में यह अध्ययन पारंपरिक संरक्षित क्षेत्रों से परे जाकर, ऊँचाई आधारित ज़ोन और प्राकृतिक गलियारों पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आसिफ बशीर शिकारी के अनुसार, “हिमालय पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में है, और यह अध्ययन हमें व्यापक तस्वीर समझने में मदद करता है।”

कुछ सीमाएँ और आगे की दिशा

हालाँकि यह अध्ययन वैश्विक पैमाने पर था, लेकिन कुछ भौगोलिक क्षेत्रों और प्रजातियों को इसमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला—जैसे यूरेशिया में ड्रैगनफ्लाइ और उत्तर अमेरिका में वृक्ष। साथ ही, भारत जैसे जैव विविधता समृद्ध क्षेत्रों के कुछ हिस्से कुछ वर्गों के लिए कमज़ोर तरीके से शामिल किए गए।
इससे यह स्पष्ट होता है कि ऐसे वैश्विक अध्ययनों के साथ-साथ क्षेत्रीय शोधों की भी आवश्यकता है जो स्थानीय स्तर की सटीक जानकारी दे सकें।

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