जैव ऊर्जा कार्यक्रम के संशोधित दिशानिर्देश: स्वच्छ ऊर्जा और किसानों को राहत की नई पहल

भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने ‘राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम’ के पहले चरण के तहत बायोमास कार्यक्रम के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश वित्त वर्ष 2021–22 से 2025–26 तक प्रभावी रहेंगे। इनका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देना, व्यापार में सहूलियत लाना, और भारत को नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य की दिशा में सशक्त बनाना है।

दस्तावेजीकरण और स्वीकृति प्रक्रिया में सुधार

संशोधित दिशानिर्देशों में सबसे उल्लेखनीय परिवर्तन दस्तावेजों की जटिलता को कम करना है। बायोमास ब्रिकेट और पैलेट निर्माण संयंत्र लगाने वाले डेवलपर्स को अब कई क्लियरेंस दस्तावेज़ जमा नहीं करने पड़ेंगे। इससे समय की बचत होगी और छोटे व मध्यम उद्यमियों के लिए व्यवसाय शुरू करना आसान होगा।

अनुबंध शर्तों में लचीलापन

पहले दो वर्ष का बिक्री अनुबंध आवश्यक होता था, लेकिन अब इसकी जगह सामान्य बिक्री समझौते को मान्यता दी गई है। इससे परियोजना डेवलपर्स बाजार की स्थितियों के अनुसार लचीलापन बरत सकते हैं, जो उद्यमिता को बढ़ावा देगा।

डिजिटल निगरानी और पारदर्शी अनुदान प्रणाली

महंगे SCADA सिस्टम की जगह अब IoT आधारित निगरानी या त्रैमासिक डेटा सबमिशन को मान्यता दी गई है। यह तकनीकी समाधान लागत प्रभावी है और छोटे उद्यमों के लिए उपयुक्त भी। साथ ही, केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) को अब परियोजना के प्रदर्शन से जोड़ा गया है। यदि कोई संयंत्र 80% या उससे अधिक क्षमता पर चलता है तो उसे पूरी वित्तीय सहायता मिलेगी, अन्यथा आंशिक सहायता प्रदान की जाएगी।

निरीक्षण प्रक्रिया में सरलीकरण

पहले संयंत्र के चालू होने के 18 महीने के भीतर निरीक्षण अनिवार्य था, लेकिन अब यह अवधि या तो चालू होने की तारीख से या ‘इन-प्रिंसिपल अप्रूवल’ की तारीख से 18 महीने तक की होगी, जो भी बाद में हो। इसके अलावा, निरीक्षण के लिए अब केवल 10 घंटे का संचालन पर्याप्त माना जाएगा, जो पहले 16 घंटे प्रतिदिन के औसत पर आधारित तीन दिनों के निरीक्षण से सरल और व्यावहारिक है।

पराली प्रबंधन को समर्थन

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान (NCR क्षेत्र) और उत्तर प्रदेश के पैलेट उत्पादकों को अब यह विकल्प मिलेगा कि वे MNRE या CPCB में से जो भी सहायता योजना उनके लिए अधिक लाभकारी हो, उसका चयन कर सकते हैं। यह पराली जलाने की समस्या को कम करने और वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • बायोमास: जैविक अवशेषों जैसे फसल की पराली, लकड़ी के टुकड़े आदि से ऊर्जा उत्पन्न करने की तकनीक।
  • SCADA सिस्टम: Supervisory Control and Data Acquisition — एक महंगा और तकनीकी जटिल डेटा निगरानी तंत्र।
  • CFA (Central Financial Assistance): केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता, जिसे अब प्रदर्शन आधारित बनाया गया है।
  • IoT आधारित निगरानी: इंटरनेट से जुड़ी स्मार्ट डिवाइसेज़ के माध्यम से रीयल-टाइम डेटा का संग्रह और विश्लेषण।

संशोधित दिशानिर्देश न केवल जैव ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाने को आसान बनाएंगे, बल्कि व्यवसायों को दक्ष संचालन के लिए प्रोत्साहित भी करेंगे। इससे कृषि अपशिष्ट प्रबंधन को प्रोत्साहन मिलेगा, पराली जलाने जैसी समस्याओं का समाधान संभव होगा और भारत की स्वच्छ ऊर्जा यात्रा को मजबूती मिलेगी।

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