जेनेटिक इंजीनियरिंग से तैयार ‘जीवित’ बायोसेंसर: इलेक्ट्रॉनिक्स और जीवविज्ञान का अद्भुत संगम

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और जीवित जीवों के बीच की दूरी अब और कम हो गई है। इम्पीरियल कॉलेज लंदन और झेजियांग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक अध्ययन में दिखाया है कि जेनेटिक रूप से संशोधित बैक्टीरिया को स्वयं-संचालित रासायनिक सेंसर में बदला जा सकता है, जो सीधे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से संवाद कर सकते हैं। यह बायोइलेक्ट्रॉनिक क्रांति सस्ते और प्रोग्रामेबल सेंसरों की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।

क्या है नया प्रयोग?

परंपरागत बायोसेंसर, जैसे कि एंजाइम आधारित, नाजुक होते हैं और जटिल वातावरण में धीमी प्रतिक्रिया देते हैं। वहीं, ‘whole-cell biosensors’ यानी जीवित सूक्ष्मजीवों पर आधारित सेंसर स्वयं को बनाए रख सकते हैं और प्रदूषित नमूनों में भी कार्य कर सकते हैं। लेकिन अब तक इनमें से अधिकांश सेंसरों के आउटपुट सिग्नल ऑप्टिकल होते थे, जो पोर्टेबल उपकरणों में आसानी से जोड़े नहीं जा सकते थे।
शोधकर्ताओं ने एक मॉड्यूलर बायोसेंसर तैयार किया है जो किसी विशेष रसायन की उपस्थिति का पता लगाकर उसे इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल सकता है, जिसे सस्ते इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों के साथ जोड़ा जा सकता है।

कैसे काम करता है यह बायोसेंसर?

शोधकर्ताओं ने Escherichia coli (E. coli) बैक्टीरिया को जैविक कंटेनर के रूप में इस्तेमाल किया। इन बैक्टीरिया में तीन बायोसेंसर मॉड्यूल डाले गए:

  • सेंसिंग मॉड्यूल: यह किसी विशेष रसायन को पहचानता है।
  • इन्फॉर्मेशन प्रोसेसिंग मॉड्यूल: यह सिग्नल को प्रोसेस या बढ़ाता है।
  • आउटपुट मॉड्यूल: यह ‘फेनाजिन’ नामक इलेक्ट्रोकेमिकल अणु का निर्माण करता है, जिसे वोल्टैमेट्री तकनीक से मापा जा सकता है।

दो महत्वपूर्ण सेंसरों की खोज

1. शुगर डिटेक्शन सेंसर:पहले सेंसर ने “एराबिनोज़” नामक प्लांट शुगर को डिटेक्ट किया। यह शुगर संपर्क में आते ही बैक्टीरिया phenazine-1-carboxylic acid उत्पन्न करता है, जो इलेक्ट्रोड को छूने पर करंट उत्पन्न करता है।
2. मरकरी डिटेक्शन सेंसर:दूसरा सेंसर जल में पारे (mercury) की मौजूदगी का पता लगाता है। इसमें MerR नामक प्रोटीन के साथ पारे की प्रतिक्रिया के बाद फेनाजिन का तीव्र उत्पादन होता है। केवल 25 नैनोमोल मरकरी — जो WHO की सुरक्षा सीमा से कम है — एक पठनीय करंट उत्पन्न करता है।
इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों ने ई. कोलाई में एक ‘AND’ लॉजिक गेट भी विकसित किया, जो तभी सिग्नल उत्पन्न करता है जब दो विशिष्ट अणु एक साथ उपस्थित हों।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • E. coli एक सामान्य बैक्टीरिया है जो मानव और गर्म रक्त वाले जानवरों की आंतों में पाया जाता है।
  • इसके कुछ प्रकार जैसे O157:H7, गंभीर खाद्यजनित बीमारी का कारण बन सकते हैं।
  • Shiga toxin-producing E. coli (STEC) 70°C पर पकाए जाने पर नष्ट हो जाता है।
  • नया बायोसेंसर E. coli के सुरक्षित और अनुकूलित स्वरूप का उपयोग करता है।

संभावनाएं और उपयोग

यह बायोसेंसर तकनीक भविष्य में प्रदूषण निगरानी, पानी की गुणवत्ता जांच, रोगजनकों की त्वरित पहचान और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में क्रांति ला सकती है। चूंकि ये सेंसर जीवित कोशिकाओं पर आधारित हैं, यह स्वयं की मरम्मत और अनुकूलन करने में सक्षम हैं — जो इन्हें दीर्घकालिक, सस्ते और टिकाऊ बनाते हैं।
शोधकर्ताओं का यह अभिनव प्रयास न केवल जैव प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स के बीच की सीमाओं को मिटा रहा है, बल्कि भविष्य के स्मार्ट बायोसेंसरों की नींव भी रख रहा है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां जीवविज्ञान, इंजीनियरिंग और कंप्यूटिंग का शक्तिशाली संगम देखने को मिल रहा है।

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