जुलाई में थोक महंगाई दर दो वर्षों के निचले स्तर पर: खाद्य और ईंधन कीमतों में गिरावट मुख्य कारण

भारत की फैक्ट्री गेट महंगाई दर यानी थोक मूल्य सूचकांक (WPI) जुलाई 2025 में -0.58 प्रतिशत रही, जो पिछले दो वर्षों का सबसे निचला स्तर है। यह लगातार दूसरा महीना है जब थोक महंगाई ऋणात्मक क्षेत्र में बनी रही है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, खाद्य और ईंधन कीमतों में गिरावट ने इस गिरावट में मुख्य भूमिका निभाई है।
खाद्य वस्तुओं में भारी गिरावट
जुलाई महीने में प्राथमिक खाद्य वस्तुओं की कीमतों में 6.29 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जो लगातार तीसरे महीने की गिरावट है। प्रमुख वस्तुओं में:
- प्याज: -44.4%
- आलू: -41.3%
- सब्जियां: -28.9%
- दालें: -15.12%
- फल: -2.65%
- अंडे, मांस और मछली: -1.09%
हालांकि, कुछ खाद्य वस्तुओं में वृद्धि भी देखी गई:
- गेहूं: +4.4%
- तिलहन (ऑयल सीड्स): +9.77%
ईंधन और ऊर्जा में नरमी
ईंधन और ऊर्जा की कीमतों में जुलाई में 2.43% की गिरावट आई। वैश्विक स्तर पर खनिज तेलों की कीमतों में गिरावट के चलते:
- पेट्रोल: -5.7% (लगातार 14वां महीना)
- हाई-स्पीड डीजल: -4.3% (लगातार 27वां महीना)
हालांकि, खाना पकाने वाली गैस (LPG) की कीमतों में 1.23% की वृद्धि हुई।
विनिर्मित वस्तुओं में मामूली वृद्धि
WPI में सबसे बड़ा भार (64.2%) रखने वाले विनिर्मित उत्पादों की कीमतों में 2.05% की वृद्धि दर्ज की गई:
- परिधान (कपड़े): +2.5%
- चमड़ा उत्पाद: +2.57%
- सीमेंट और प्लास्टर: +3.4%
- खाद्य उत्पाद (मैन्युफैक्चरिंग): +6.7%
- पशु वसा और तेल: +22.04% (हालांकि गति धीमी हुई)
खबर से जुड़े जीके तथ्य
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भारत में WPI तीन मुख्य समूहों में बंटा होता है:
- प्राथमिक वस्तुएं: 22.6% भार
- ईंधन एवं ऊर्जा: 13.2% भार
- विनिर्मित उत्पाद: 64.2% भार
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सबसे अधिक वज़न वाली विनिर्मित श्रेणियाँ हैं:
- मूल धातुएं: 9.7%
- खाद्य उत्पाद: 9.1%
- रसायन उत्पाद: 6.5%
- वस्त्र: 4.9%
- WPI को भारत में महंगाई मापने के मुख्य सूचक के रूप में देखा जाता है।
भविष्य की संभावनाएं
ICRA के वरिष्ठ अर्थशास्त्री राहुल अग्रवाल के अनुसार, जुलाई में दर्ज यह ऋणात्मक दर शायद थोक महंगाई का सबसे निचला बिंदु हो सकता है। अगस्त में खाद्य वस्तुओं और कच्चे तेल की कीमतों में संभावित वृद्धि, रुपया–डॉलर विनिमय दर में गिरावट और कम आधार प्रभाव के चलते थोक महंगाई फिर से सकारात्मक क्षेत्र में जा सकती है। इसके अलावा, अगस्त के उत्तरार्ध में भारी वर्षा के कारण खराब होने वाली वस्तुओं की कीमतों में तेज़ वृद्धि की आशंका भी जताई जा रही है।
थोक और खुदरा महंगाई में इस तरह की गिरावट से उपभोक्ताओं को राहत तो मिलती है, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए यह संकेत भी देती है कि मांग पक्ष में सुस्ती बनी हुई है। आने वाले महीनों में मौसम, वैश्विक कीमतें और घरेलू उत्पादन इस दिशा में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।