जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री साने ताकाइची और सूमो परंपरा का विवाद

जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री साने ताकाइची और सूमो परंपरा का विवाद

जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री साने ताकाइची आज राष्ट्रीय बहस के केंद्र में हैं। फुकुओका ग्रैंड सूमो टूर्नामेंट अपने अंतिम चरण में है, और सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री ताकाइची पवित्र “दोह्यो” (सूमो अखाड़ा) में प्रवेश कर प्रधानमंत्री ट्रॉफी प्रदान करेंगी। यह निर्णय केवल एक रस्म नहीं, बल्कि जापान के परंपरा और आधुनिक समानता के बीच चल रही खींचतान का प्रतीक बन गया है।

साने ताकाइची: ऐतिहासिक उपलब्धि और शुरुआती चुनौतियाँ

अक्टूबर 2025 में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की नेतृत्व जीतकर साने ताकाइची ने जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनकर इतिहास रच दिया। अपनी रूढ़िवादी छवि, आर्थिक पुनरुत्थान और राष्ट्रीय सुरक्षा पर जोर देने के कारण वे पहले ही सुर्खियों में थीं। लेकिन अब सूमो की परंपरा से जुड़ा यह विवाद उनके नेतृत्व की परीक्षा बन गया है क्या वे धार्मिक परंपराओं का सम्मान करेंगी या समानता के नए युग की ओर कदम बढ़ाएँगी?

शिंतो परंपरा और महिलाओं का निषेध

सूमो अखाड़े से महिलाओं को दूर रखने की प्रथा शिंतो धर्म की मान्यताओं से जुड़ी है। माना जाता है कि “दोह्यो” एक पवित्र स्थान है और महिलाओं का प्रवेश धार्मिक अपवित्रता का कारण बन सकता है। इसी कारण सदियों से महिलाएँ न तो सूमो कुश्ती में हिस्सा ले सकती हैं, न ही पुरस्कार वितरण जैसी रस्मों में शामिल हो सकती हैं। हालांकि आधुनिक जापान में इसे भेदभाव के रूप में देखा जा रहा है, फिर भी जापान सूमो एसोसिएशन (JSA) इसे सांस्कृतिक संरक्षण के रूप में बनाए रखे हुए है।

अतीत के विवाद और सुधार के प्रयास

इतिहास में कई बार महिलाएँ इस परंपरा को चुनौती दे चुकी हैं।1990 में चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी मयूमी मोरियामा को अखाड़े में प्रवेश से रोका गया था।2000 में ओसाका की गवर्नर फुसए ओहता को ट्रॉफी अखाड़े के बाहर से ही सौंपनी पड़ी।2018 में जब एक मेयर को दिल का दौरा पड़ा और महिला चिकित्सक उसकी मदद करने दोह्यो में उतरीं, तो उन्हें तुरंत बाहर जाने का आदेश दिया गया जिससे राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश फैल गया।हालाँकि 2019 में JSA ने एक सलाहकार समिति बनाई थी, पर कोई ठोस बदलाव आज तक नहीं हुआ।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • साने ताकाइची अक्टूबर 2025 में जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
  • शिंतो परंपरा के अनुसार सूमो अखाड़ा पवित्र माना जाता है और महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
  • जापान सूमो एसोसिएशन ने 2019 में इस नियम की समीक्षा की थी, पर निर्णय नहीं लिया गया।
  • 2018 में महिला डॉक्टरों के दोह्यो में प्रवेश ने समानता पर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी थी।

परंपरा बनाम आधुनिकता: एक नाजुक संतुलन

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री ताकाइची क्या कदम उठाती हैं। यदि वे दोह्यो में प्रवेश करती हैं, तो यह सदियों पुरानी परंपरा को चुनौती देने वाला ऐतिहासिक क्षण होगा; लेकिन अगर वे बाहर रहती हैं, तो यह उनके रूढ़िवादी समर्थकों के अनुरूप पारंपरिक सम्मान का प्रतीक होगा। सूमो की बढ़ती लोकप्रियता और देश की नई पीढ़ी की समानता की आकांक्षाओं के बीच यह घटना जापान के सामाजिक परिवर्तन की दिशा तय कर सकती है।

Originally written on November 12, 2025 and last modified on November 12, 2025.

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