जलवायु संकट और सूचना असत्यता: वैश्विक कार्रवाई में सबसे बड़ी बाधा

जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों को अब एक और गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा है — झूठी और भ्रामक सूचनाओं का व्यापक प्रसार। इंटरनेशनल पैनल ऑन द इन्फॉर्मेशन एनवायरनमेंट (IPIE) द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट Information Integrity about Climate Science: A Systematic Review के अनुसार, जलवायु विज्ञान और उससे जुड़े समाधानों को लेकर फैलाई जा रही गलत जानकारियाँ जलवायु कार्रवाई में गंभीर रुकावट पैदा कर रही हैं।
जलवायु सूचना की असत्यता: मूल कारण और स्रोत
रिपोर्ट में 2015 से 2025 के बीच किए गए 300 अध्ययनों की व्यवस्थित समीक्षा की गई है। इसका निष्कर्ष यह है कि गलत जानकारी केवल जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक तथ्यों को नहीं, बल्कि इससे निपटने के उपायों को भी निशाना बना रही है। जीवाश्म ईंधन कंपनियाँ जैसे कि ExxonMobil, BP, Chevron, Shell, और कोयला उत्पादक Peabody जैसी कंपनियाँ, वैज्ञानिक तथ्यों को विकृत करके अपने कार्बन उत्सर्जन के प्रभाव को कमतर दिखाने का प्रयास कर रही हैं।
इसी तरह, उच्च उत्सर्जन उद्योगों — जैसे विमानन, फास्ट फूड, पर्यटन और पशुपालन — में भी तथ्यों की हेरफेर सामने आई है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में पशुपालन क्षेत्र ने वैज्ञानिक संस्थानों के साथ मिलकर अपने कार्बन फुटप्रिंट को जानबूझकर कम करके प्रस्तुत किया, जिससे जनता और नीति-निर्माताओं को गुमराह किया गया।
किस तरह फैल रही है गलत जानकारी
यह भ्रामक जानकारी कई माध्यमों से फैलती है — सोशल मीडिया, टीवी, अखबारों से लेकर व्यक्तिगत बातचीत तक। आम जनता मुख्य रूप से न्यूज़ प्लेटफार्म और सोशल मीडिया के जरिए इस गलत सूचना के संपर्क में आती है, जबकि नीति निर्माता अक्सर छिपे और अप्रत्यक्ष माध्यमों से प्रभावित होते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- रिपोर्ट में शामिल 300 अध्ययन 2015 से 2025 के बीच किए गए हैं।
- एक अध्ययन में पाया गया कि 44% कार्बन से संबंधित दावे विमानन कंपनियों के झूठे थे।
- रिपोर्ट ने सूचना सुरक्षा के लिए ISO 27000 मानक के अंतर्गत “Information Integrity” को परिभाषित किया है।
- Global South (दक्षिणी गोलार्द्ध) से संबंधित डेटा की भारी कमी रिपोर्ट में उजागर की गई है।
इसके व्यापक प्रभाव और समाधान
जलवायु से जुड़ी यह सूचना असत्यता जनमानस को भ्रमित करती है, वैज्ञानिक सहमति पर विश्वास घटाती है और राजनीतिक निर्णयों को जड़ बना देती है। इससे न केवल कार्बन उत्सर्जन कम करने की समय-सीमा को नुकसान होता है, बल्कि नेट ज़ीरो के लक्ष्य तक पहुंचना भी मुश्किल होता है।
IPIE ने इस समस्या से निपटने के लिए चार प्रमुख नीति सिफारिशें की हैं:
- कानूनी और नियामक सुधार — गलत दावों पर सख्त कार्रवाई के लिए।
- उत्सर्जन की पारदर्शी रिपोर्टिंग — मानकीकरण और सत्यापन के साथ।
- हितधारकों के बीच व्यापक सहयोग — उद्योग, सरकार और नागरिक समाज के बीच।
- जन-जागरूकता अभियान — दीर्घकालिक और सतत शिक्षा पर जोर।
जलवायु संकट से निपटने की समय सीमा पहले ही सीमित है, और यदि सूचना असत्यता का समाधान नहीं किया गया, तो यह पूरी वैश्विक रणनीति को पटरी से उतार सकता है। अब समय है कि हम विज्ञान आधारित सच्ची जानकारी के प्रचार और भ्रामक सूचनाओं के खंडन को प्राथमिकता दें, ताकि धरती को बचाने की यह लड़ाई उद्देश्यपूर्ण और प्रभावी बनी रहे।