जलवायु संकट और फॉसिल फ्यूल फाइनेंसिंग: वैश्विक बैंकों की भूमिका और भारत की स्थिति

2024 में, दुनिया की 65 सबसे बड़ी बैंकों ने फॉसिल फ्यूल कंपनियों को कुल $869 अरब का वित्त पोषण प्रदान किया, जो 2023 की तुलना में $162 अरब अधिक था। यह प्रवृत्ति न केवल वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के लिए एक गंभीर चुनौती है, बल्कि यह संकेत देती है कि वित्तीय संस्थाएं अब भी फॉसिल फ्यूल के पक्ष में निर्णय ले रही हैं।

SBI और भारतीय बैंकों की भूमिका

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) भारत की एकमात्र बैंक है जो इस सूची में शामिल रही, और उसने 2024 में फॉसिल फ्यूल कंपनियों को $2.62 अरब का ऋण प्रदान किया, जो 2023 की तुलना में $65 मिलियन अधिक है।

  • 2021 से 2024 तक SBI का कुल फॉसिल फ्यूल फाइनेंसिंग: $10.6 अरब
  • SBI का स्थान: 47वां (2024), 49वां (2023)
  • हरित अग्रिम लक्ष्य: 2030 तक कुल घरेलू अग्रिमों का 7.5%
  • नेट ज़ीरो लक्ष्य: 2055

बेंगलुरु आधारित थिंक-टैंक “Climate Risk Horizons” के अनुसार, कोयला वित्त पोषण अब भी भारतीय बैंकों के लिए एक “बड़ा अंधा क्षेत्र” है। केवल Federal Bank और RBL Bank ने स्पष्ट कोयला निषेध नीतियाँ अपनाई हैं।

वैश्विक परिदृश्य और नीति बदलाव

फॉसिल फ्यूल फाइनेंसिंग में वृद्धि एक चिंताजनक प्रवृत्ति है, विशेषकर ऐसे समय में जब 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया है।

  • JPMorgan Chase ने अकेले $53.5 अरब का ऋण दिया – SBI के 4 वर्षों की फंडिंग से अधिक
  • अमेरिकी बैंक Wells Fargo ने नेट ज़ीरो लक्ष्यों को वापस ले लिया
  • अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से हटने की प्रक्रिया शुरू की – 2026 से प्रभावी

यह नीति बदलाव दर्शाते हैं कि नीतिगत स्तर पर भी अब वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं में कमजोरी आ रही है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2024 में फॉसिल फ्यूल फाइनेंसिंग: $869 अरब (2023 में $707 अरब)
  • SBI की 2024 की फंडिंग: $2.62 अरब (47वां स्थान)
  • JPMorgan Chase की 2024 की फंडिंग: $53.5 अरब (शीर्ष स्थान)
  • पेरिस समझौते के बाद कुल वैश्विक फॉसिल फ्यूल फाइनेंसिंग (2016-2024): $7.9 ट्रिलियन

निष्कर्ष

जब जलवायु संकट अपनी चरम सीमा पर है और वैज्ञानिक “नेट ज़ीरो” की तात्कालिकता पर जोर दे रहे हैं, ऐसे में वैश्विक बैंकों का फॉसिल फ्यूल में निवेश बढ़ाना चिंता का विषय है। भारत जैसे देश, जो जलवायु संकट से गहराई से प्रभावित हैं, उन्हें न केवल अपने बैंकों की फाइनेंसिंग नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए बल्कि हरित वित्त पोषण को प्राथमिकता देनी चाहिए। अन्यथा, नीतिगत घोषणाएं जैसे “2055 तक नेट ज़ीरो” केवल प्रतीकात्मक रह जाएंगी।

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