जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा को खतरा: तापमान वृद्धि और फसल उत्पादन पर नया अध्ययन

विश्व स्तर पर औसत तापमान में हर 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति उपलब्ध कैलोरी 2100 तक अनुशंसित मात्रा से 4% कम हो जाएगी। यह चेतावनी हाल ही में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित एक व्यापक मॉडलिंग अध्ययन से सामने आई है, जिसमें जलवायु परिवर्तन का वैश्विक खाद्य उत्पादन पर प्रभाव और किसानों की अनुकूलन क्षमता का आकलन किया गया है।

प्रमुख फसलें और क्षेत्रीय प्रभाव

अध्ययन के अनुसार, गेहूं, चावल, मक्का, सोयाबीन और ज्वार जैसी मुख्य फसलों की उत्पादकता 2050 और 2100 तक उल्लेखनीय रूप से घट सकती है। विशेष रूप से उत्तरी भारत में गेहूं की पैदावार पर गंभीर असर पड़ने की संभावना है, जबकि चावल की पैदावार पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ेगा।
चीन, रूस, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में उच्च उत्सर्जन परिदृश्य के तहत गेहूं की उपज में 30% से 40% तक की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि पूर्वी और पश्चिमी यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में यह नुकसान 15% से 25% के बीच रहने की संभावना है। वहीं पश्चिमी चीन में गेहूं की उपज में मिश्रित बदलाव — कहीं लाभ, कहीं हानि — देखने को मिल सकते हैं।

यथार्थवादी मॉडलिंग और अनुकूलन की भूमिका

इस अध्ययन की विशेषता यह है कि इसमें जलवायु परिवर्तन के प्रति किसानों की अनुकूलन नीतियों को मॉडल में शामिल किया गया है, जैसे ताप-सहिष्णु किस्मों का चयन, बोवाई के समय में बदलाव, और सिंचाई समय का समायोजन। ऐसे उपायों को गणनाओं में शामिल करने से एक अधिक “वास्तविकता-आधारित” मूल्यांकन संभव हुआ है।
अध्ययन में उपयोग किया गया डाटा सेट 13,500 राजनीतिक इकाइयों और 54 देशों के 12,658 उप-प्रशासनिक क्षेत्रों को कवर करता है, जिससे यह विश्लेषण विविध भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्यों को समाहित करता है।

जलवायु परिवर्तन से फसल उत्पादन पर संभावित राहत

अनुमान है कि यदि किसान वैश्विक स्तर पर उचित रणनीतियाँ अपनाएँ, तो 2050 तक लगभग 23% और 2100 तक 34% वैश्विक नुकसान को रोका जा सकता है। हालांकि, चावल को छोड़कर अन्य सभी प्रमुख फसलों में “महत्वपूर्ण शेष हानियाँ” बनी रहेंगी।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में गेहूं और चावल खाद्य सुरक्षा के प्रमुख आधार हैं; विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश गेहूं उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र हैं।
  • ‘नेचर’ एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जर्नल है जो उच्च-गुणवत्ता वाले शोध प्रकाशित करता है।
  • वर्तमान में भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है।
  • जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र वे हैं जिन्हें “मॉडर्न ब्रेडबास्केट” कहा जाता है — जैसे अमेरिका, रूस और चीन — जिनकी मौजूदा अनुकूलन क्षमता सीमित है।

इस अध्ययन के निष्कर्ष यह संकेत देते हैं कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल गरीब देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उन क्षेत्रों में भी महसूस किया जाएगा जो आज खाद्यान्न उत्पादन के वैश्विक केंद्र हैं। इसलिए नवाचार, कृषि विस्तार और अधिक व्यापक अनुकूलन नीतियाँ अपनाना अब वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो गया है।

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