जलवायु और स्वास्थ्य पर वैश्विक एजेंडा तय करता सम्मेलन: भारत की अनुपस्थिति और संभावनाएं

29 से 31 जुलाई 2025 के बीच ब्राज़ील ने ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑन क्लाइमेट एंड हेल्थ की मेज़बानी की, जिसमें 90 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और बेलेम हेल्थ एक्शन प्लान को अंतिम रूप दिया। यह योजना नवंबर 2025 में COP30 के दौरान लॉन्च की जाएगी और वैश्विक स्तर पर जलवायु और स्वास्थ्य पर भविष्य की नीति को दिशा देगी। इस महत्त्वपूर्ण मंच पर भारत की आधिकारिक अनुपस्थिति को एक गंभीर अवसर चूकना माना जा रहा है — विशेषकर तब जब भारत के बहुआयामी विकास कार्यक्रम इस एजेंडे के क्रियान्वयन के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल प्रस्तुत कर सकते थे।

भारत के कल्याणकारी कार्यक्रमों से वैश्विक दक्षिण के लिए सबक

भारत की कई प्रमुख योजनाएं — चाहे वे पोषण, स्वच्छता, रोजगार या स्वच्छ ईंधन से जुड़ी हों — सीधे तौर पर जलवायु नीति नहीं थीं, फिर भी उन्होंने स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लाभ प्रदान किए। इन योजनाओं ने यह दिखाया कि जब विभिन्न क्षेत्रों के बीच समन्वय हो, तो व्यापक और टिकाऊ परिवर्तन संभव हैं:

  • PM POSHAN: 11 करोड़ बच्चों को पोषण उपलब्ध कराने के साथ-साथ यह योजना कृषि, शिक्षा और खाद्य प्रणाली को भी जोड़ती है। पारंपरिक अनाजों के प्रयोग से यह जलवायु-लचीली खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देती है।
  • स्वच्छ भारत मिशन: स्वच्छता और स्वास्थ्य के साथ-साथ यह सामाजिक गरिमा और पर्यावरणीय सततता को भी संबोधित करता है।
  • मनरेगा: पर्यावरणीय बहाली और ग्रामीण आजीविका को एक साथ मजबूत करता है।
  • प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY): स्वच्छ ईंधन के उपयोग से घरेलू वायु प्रदूषण में कमी और कार्बन उत्सर्जन में गिरावट।

इन अनुभवों से मिले तीन रणनीतिक सूत्र

  1. राजनीतिक प्राथमिकता और नेतृत्वजब योजनाओं को प्रधानमंत्री स्तर से समर्थन मिलता है और उन्हें स्वास्थ्य संकट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तब वे प्रशासन और जनता — दोनों का ध्यान खींचती हैं।
  2. सांस्कृतिक और सामुदायिक जुड़ावस्वच्छ भारत में गांधी जी की स्वच्छता की विचारधारा, और POSHAN में माता-पिता की भागीदारी जैसे तत्व योजनाओं को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाते हैं। जलवायु कार्रवाई को भी सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ना अनिवार्य है।
  3. मौजूदा संस्थागत ढांचे का उपयोगनई संस्थाओं की जगह, आशा कार्यकर्ता, पंचायत प्रतिनिधि और स्वयं सहायता समूह जैसे पहले से मौजूद तंत्रों का उपयोग प्रभावी साबित हुआ है। इसी प्रकार जलवायु नीति को भी इन्हीं संस्थाओं के माध्यम से लागू किया जा सकता है।

कुछ चुनौतियाँ भी हैं

हालांकि, अनुभव यह भी दिखाते हैं कि प्रशासनिक विभागीयता (siloed functioning) और संरचनात्मक असमानताएं योजनाओं की प्रभावशीलता में बाधा बन सकती हैं। जैसे, PMUY में रिफिल की लागत उच्च होने के कारण इसका लाभ सीमित रहा। इसके अलावा, सामाजिक व सांस्कृतिक अवरोध भी वास्तविक उपयोग में कमी लाते हैं।

भारत के लिए एक संभावित नीति ढांचा

भारत का अनुभव एक स्वास्थ्य-आधारित जलवायु शासन के लिए तीन प्रमुख स्तंभ प्रस्तावित करता है:

  1. नेतृत्व द्वारा प्राथमिकता निर्धारणजलवायु नीतियों को भविष्य के संकट की बजाय वर्तमान के स्वास्थ्य लाभ के रूप में पेश करना।
  2. प्रक्रियागत समावेशनहर जलवायु-संबंधी नीति में स्वास्थ्य प्रभाव मूल्यांकन (Health Impact Assessment) अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  3. सक्रिय सामुदायिक भागीदारीजब स्वास्थ्य कार्यकर्ता पर्यावरणीय परिवर्तन और स्वास्थ्य के बीच संबंध को पहचानते हैं, तो वे प्रभावशाली जलवायु दूत बन सकते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • COP30 सम्मेलन नवंबर 2025 में ब्राज़ील के अमेज़न क्षेत्र में होगा।
  • बेलेम हेल्थ एक्शन प्लान जलवायु और स्वास्थ्य को जोड़ने वाला पहला वैश्विक नीति दस्तावेज़ होगा।
  • PM POSHAN, PMUY, स्वच्छ भारत मिशन, मनरेगा भारत सरकार की प्रमुख बहु-क्षेत्रीय योजनाएं हैं।
  • भारत के पास ASHA कार्यकर्ता जैसी 10 लाख+ जमीनी स्वास्थ्य कर्मियों की फौज है, जो जलवायु स्वास्थ्य के मोर्चे पर प्रमुख भूमिका निभा सकती है।

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