जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नामांकित विधायकों को लेकर केंद्र का रुख: क्या कहता है संविधान और न्यायिक दृष्टिकोण?

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में दायर एक हलफनामे में यह स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (LG) को विधानसभा में पाँच नामांकित सदस्यों को नियुक्त करने की शक्ति बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के प्राप्त है। यह मुद्दा संवैधानिक प्रावधानों, न्यायिक व्याख्याओं और संघीय ढांचे की भावना के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

संविधान में नामांकन का प्रावधान

भारतीय संविधान संसद और राज्यों की विधानसभाओं में नामांकित सदस्यों का प्रावधान करता है:

  • राज्यसभा: राष्ट्रपति द्वारा 12 सदस्य नामांकित किए जाते हैं, यह प्रक्रिया केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह से होती है।
  • राज्य विधान परिषदें: 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर नामांकित किए जाते हैं।
  • लोकसभा और विधानसभाएं: पहले अंग्लो-इंडियन सदस्यों के लिए नामांकन की अनुमति थी, जिसे 2020 में समाप्त कर दिया गया।

संघ राज्य क्षेत्रों में विधानसभाओं की स्थिति

तीन संघ राज्य क्षेत्रों—दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर—में विधानसभाएं हैं, जिनका गठन संसद के अधिनियमों के तहत हुआ है:

  • दिल्ली विधानसभा: 70 निर्वाचित सदस्य, नामांकित विधायक नहीं होते।
  • पुडुचेरी विधानसभा: 30 निर्वाचित सदस्य + 3 नामांकित सदस्य (केंद्र सरकार द्वारा नामांकित)।
  • जम्मू-कश्मीर विधानसभा: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (संशोधित 2023) के तहत 90 निर्वाचित सीटें + अधिकतम 5 नामांकित सदस्य — जिनमें 2 महिलाएं, 2 कश्मीरी प्रवासी, और 1 पीओके से विस्थापित व्यक्ति शामिल हो सकते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • जम्मू-कश्मीर में नामांकित विधायकों का प्रावधान धारा 15, 15A और 15B के तहत है।
  • पुडुचेरी मामले में K. लक्ष्मीनारायणन बनाम भारत संघ (2018) में मद्रास उच्च न्यायालय ने केंद्र को नामांकन का अधिकार मान्यता दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सिफारिशों को रद्द कर दिया।
  • NCT दिल्ली बनाम भारत संघ (2023) में सुप्रीम कोर्ट ने “ट्रिपल चेन ऑफ कमांड” की अवधारणा को मान्यता दी और कहा कि LG को मंत्रिपरिषद की सलाह का पालन करना होगा, जब तक कि मामला विधानसभा के अधिकार क्षेत्र से बाहर न हो।

लोकतांत्रिक सिद्धांतों की दृष्टि से आवश्यक कदम

यद्यपि संघ राज्य क्षेत्र पूर्ण राज्य नहीं होते, लेकिन जहाँ विधानसभा है, वहाँ चुनी हुई सरकार जनता को जवाबदेह होती है। ऐसे में—

  • यदि उपराज्यपाल बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के नामांकन करें, तो यह लोकतांत्रिक जवाबदेही की श्रृंखला को तोड़ सकता है।
  • पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर जैसी छोटी विधानसभाओं में कुछ नामांकित सदस्य बहुमत का संतुलन बदल सकते हैं, जिससे जनमत का उल्लंघन हो सकता है।
  • विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, जो 2019 तक पूर्ण राज्य था और उसे विशेष दर्जा प्राप्त था, वहाँ ऐसा निर्णय और अधिक संवेदनशील हो जाता है।

केंद्र सरकार ने स्वयं सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है कि राज्य का दर्जा शीघ्र बहाल किया जाएगा। ऐसे में नामांकित विधायकों की नियुक्ति में स्थानीय निर्वाचित सरकार की सलाह लेना लोकतांत्रिक मूल्य और संघीय संतुलन को बनाए रखने के लिए उपयुक्त होगा।
संक्षेप में, संविधान की भावना, न्यायिक प्रवृत्तियाँ, और लोकतांत्रिक उत्तरदायित्व को देखते हुए यह आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा में नामांकित सदस्यों की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही की जाए।

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