जनगणना 2027 में ‘शहरी क्षेत्र’ की पुरानी परिभाषा बनाए रखने का निर्णय: एक चिंताजनक कदम

भारत सरकार ने 2027 की जनगणना में ‘शहरी क्षेत्र’ की परिभाषा को पूर्ववत बनाए रखने का प्रस्ताव दिया है। रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त मृत्युंजय कुमार नारायण द्वारा राज्यों के जनगणना संचालन निदेशालय को भेजे गए एक पत्र में कहा गया कि इससे शहरीकरण के रुझानों का तुलनात्मक विश्लेषण संभव होगा। परंतु यह निर्णय भारत के तेजी से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य की अनदेखी करता है, विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच धुंधली होती सीमाओं की।

वर्तमान ‘शहरी क्षेत्र’ की परिभाषा क्या है?

2011 की जनगणना में शहरी क्षेत्रों को दो श्रेणियों में बाँटा गया था: सांविधिक नगर (Statutory Towns) और जनगणना नगर (Census Towns)। सांविधिक नगर वे हैं जिन्हें राज्य सरकारों द्वारा शहरी घोषित किया गया है और जिनमें नगरपालिका, नगर परिषद, या नगर पंचायत जैसे शहरी निकाय होते हैं।
वहीं, वे क्षेत्र जो निम्नलिखित तीन मानदंडों को पूरा करते हैं, जनगणना नगर कहलाते हैं:

  • न्यूनतम जनसंख्या 5,000 हो,
  • कम से कम 75% पुरुष कार्यरत जनसंख्या कृषिेतर कार्यों में लगी हो,
  • जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक हो।

हालाँकि, जनगणना नगर प्रशासनिक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत ही आते हैं, जिससे उनके शहरी स्वरूप के अनुरूप विकास और सेवाएँ नहीं मिल पातीं।

वर्तमान परिभाषा की सीमाएँ

भारत में शहरी निकाय अधिक स्वायत्त होते हैं, जिनके पास वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार होते हैं। दूसरी ओर, ग्रामीण क्षेत्रों की पंचायतें मुख्यतः केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू करने तक ही सीमित रहती हैं। इस कारण से, यदि किसी क्षेत्र को ‘शहरी’ दर्जा मिलता है तो उसका समुचित विकास संभव होता है।
लेकिन वर्तमान परिभाषा एक कठोर द्वैध व्यवस्था (binary framework) पर आधारित है जो ‘ग्रामीण’ और ‘शहरी’ के बीच के संक्रमणशील क्षेत्रों को नज़रअंदाज़ करती है। तेजी से हो रहे शहरीकरण के चलते अनेक गाँव शहरी स्वरूप में बदल रहे हैं, परंतु प्रशासनिक स्तर पर वे अब भी ग्रामीण ही माने जाते हैं। इससे न केवल योजना और संसाधन वितरण में बाधा आती है, बल्कि इन क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान भी नहीं हो पाता।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • जनगणना 2011 में भारत की शहरी आबादी 31% दर्ज की गई थी, परंतु वैकल्पिक मानकों से यह 35-57% तक हो सकती है।
  • पश्चिम बंगाल में 2001 और 2011 के बीच 526 नए जनगणना नगर जोड़े गए थे — यह सबसे अधिक वृद्धि थी।
  • 2001 में वर्गीकृत 251 जनगणना नगर 2011 तक भी ग्रामीण प्रशासन के अधीन ही रहे।
  • जनगणना नगरों को शहरी घोषित नहीं किए जाने के कारण वे बुनियादी ढांचे और शहरी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *