जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

भगवान जगन्नाथ की उत्पत्ति के संबंध में दो संस्करण हैं एक पुराणों पर आधारित है और दूसरा लोककथाओं पर आधारित है। मंदिर का इतिहास 12 वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है। मंदिर का निर्माण गंग राजवंश के चोडागंगदेव ने किया था किन्तु इसे राजा अनंगभीम देव ने पूरा किया था। यह मंदिर प्राचीन काल से ओडिशा की मिट्टी पर स्थित था। कभी-कभी मंदिर को ओडिशा के शासक राजवंशों द्वारा संरक्षण दिया जाता था और कभी-कभी इसे काफी हद तक उपेक्षित किया जाता था। उड़ीसा में गंग राजवंश के समय से ही मंदिर को शासकों से पूर्ण संरक्षण प्राप्त था क्योंकि गंगा वंश के शासकों का मानना था कि भगवान जगन्नाथ वास्तविक शासक थे। 16वीं शताब्दी में पुरी के जगन्नाथ मंदिर को अफगानों ने लूट लिया था। अफगानों के हमले के दौरान मंदिर के पुजारियों ने देवता की मूर्तियों को एकांत में रखकर बचाया था। कई बार मुस्लिम शासकों ने मंदिर पर हमला किया था और हर बार मंदिर की पूजा बंद हो गई थी लेकिन जल्द ही इसे बहाल कर दिया गया था। एक बार ओडिशा मराठा शासकों के अधीन आ गया था लेकिन उस समय मंदिर की पूजा बंद नहीं हुई थी। मुस्लिम शासकों ने जगन्नाथ मंदिर को अपवित्र करने के कई प्रयास किए। कबीर ने पुरी में एक मठ की स्थापना की जिसे कबीर-चौरा के नाम से जाना जाता है। आदि शंकराचार्य ने पुरी का दौरा किया और अपने शिष्य पद्म पदाचार्य विद्वानों के अधीन अपना मठ (गोवर्धन मठ) स्थापित किया। अंग्रेजों के भारत आने से मंदिर प्रबंधन तनाव में आ गया था किन्तु अंग्रेजों ने हिंदुओं को भगवान जगन्नाथ की पूजा करने से कभी नहीं रोका।
भारत में औपनिवेशिक शासकों ने भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण दिया था। जगन्नाथ के मंदिर को आज तक विच्छेदित करने के सभी प्रयासों के बावजूद मंदिर हिंदुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण के रूप में खड़ा है।

Originally written on February 2, 2022 and last modified on February 2, 2022.

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