चीन में मिला प्राचीन ‘कोएलाकैंथ’ प्रजाति का जीवाश्म: विकासवाद के अध्ययन में नई दिशा
कोएलाकैंथ मछलियाँ, जिन्हें जीवित जीवाश्म भी कहा जाता है, अब एक बार फिर वैज्ञानिकों के शोध का केंद्र बनी हैं। चीन के अनहुई प्रांत में हाल ही में पाए गए कोएलाकैंथ की एक नई प्रजाति Whiteia anniae ने इस दुर्लभ मछली के विकास और विविधता को लेकर नई जानकारियाँ दी हैं। यह खोज न केवल एशिया में इस वंश के पहले प्रमाण के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि कोएलाकैंथ की शरीराकृति और विकास क्रम की समझ को भी गहराई प्रदान करती है।
कोएलाकैंथ: जीवाश्म विज्ञान की एक जिज्ञासु कड़ी
कोएलाकैंथ मछलियाँ, सैकड़ों मिलियन वर्षों से अस्तित्व में रही हैं। इन्हें सार्कॉप्टेरिजियन मछलियों के अंतर्गत रखा जाता है — वही वर्ग, जिससे भूमि पर रहने वाले कशेरुकी प्राणी (जैसे उभयचर और सरीसृप) विकसित हुए माने जाते हैं। ये मछलियाँ प्रारंभिक डेवोनियन काल (लगभग 410 मिलियन वर्ष पूर्व) से ज्ञात हैं और अब तक चार प्रमुख वैश्विक विलुप्ति घटनाओं से बची रही हैं।
नई प्रजाति Whiteia anniae की विशेषताएँ
हालिया खोज में वैज्ञानिकों को दो जीवाश्म नमूने मिले, जो लगभग 24.9 करोड़ वर्ष पहले, प्रारंभिक ट्राइऐसिक काल के स्मिथियन युग में समुद्री पर्यावरण में रहते थे। यह नई प्रजाति आकार में 41 से 46 सेंटीमीटर लंबी थी, जो कि पहले से ज्ञात Whiteia प्रजातियों से कहीं बड़ी है। यह विशेषता इसे कोएलाकैंथ की शरीर संरचना में विविधता की एक नई कड़ी बनाती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कोएलाकैंथ एक पुरानी मछली प्रजाति है, जो डेवोनियन काल से अब तक अस्तित्व में है।
- नई खोजी गई प्रजाति का नाम Whiteia anniae है, जो 249 मिलियन वर्ष पुरानी है।
- यह प्रजाति चीन के अनहुई प्रांत में पाई गई और यह एशिया में Whiteia वंश की पहली पुष्टि है।
- पहले की Whiteia प्रजातियाँ 11.5 से 27 सेमी लंबी थीं; जबकि Whiteia anniae 41–46 सेमी लंबी थी।
- शोधपत्र 17 अक्टूबर को Scientific Reports पत्रिका में प्रकाशित हुआ।
विकासवादी अध्ययन में नया अध्याय
वैज्ञानिकों के अनुसार, कोएलाकैंथ लंबे समय तक शरीर रचना में स्थिर (morphologically conservative) माने जाते थे। लेकिन हाल के वर्षों में मिले जीवाश्म प्रमाण दर्शाते हैं कि इनके शरीर आकार में काफी विविधता रही है। नई खोज, विशेष रूप से Whiteia anniae, इस बात को और मजबूत करती है कि कोएलाकैंथ मछलियाँ न केवल दीर्घजीवी रही हैं, बल्कि समय के साथ इनमें रूपात्मक बदलाव भी हुए हैं।