चिनाब पर सावलकोट बांध को हरी झंडी देने की तैयारी, 1,865 मेगावॉट की परियोजना रणनीतिक रूप से अहम

जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर प्रस्तावित सावलकोट जलविद्युत परियोजना एक बार फिर सुर्खियों में है। 1984 में शुरू की गई यह परियोजना अब केंद्र सरकार की रणनीतिक प्राथमिकताओं में शामिल हो चुकी है। इंडस जल संधि (IWT) के निलंबन के बाद सरकार ने इसे तेज़ी से आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) इस सप्ताह परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति देने पर विचार करेगी।
परियोजना की पृष्ठभूमि और क्षमता
सावलकोट बांध भारत के पश्चिमी नदियों पर बनने वाले सबसे बड़े जलविद्युत प्रोजेक्ट्स में से एक है।
- कुल स्थापित क्षमता: 1,865 मेगावॉट (स्टेज-I: 1,406 MW, स्टेज-II: 450 MW)
- बांध की ऊँचाई: 192.5 मीटर (कंक्रीट ग्रेविटी डैम)
- जलाशय क्षमता: 530 मिलियन घन मीटर, फैला हुआ 1,159 हेक्टेयर में
- प्रभावित क्षेत्र: 846 हेक्टेयर वन भूमि, जिसमें 2,22,081 पेड़ों की कटाई होगी (सिर्फ रामबन जिले में 1,26,462 पेड़)
हालांकि इसे “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजना कहा जाता है, विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े बांध और जलाशय के कारण इसे इस श्रेणी में रखना भ्रामक है।
रणनीतिक महत्व और IWT का निलंबन
इंडस जल संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों (चिनाब, सिंधु और झेलम) का सीमित उपयोग करने की अनुमति थी। लेकिन अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद संधि को निलंबित कर दिया गया। इसके बाद से भारत ने चिनाब पर अपनी योजनाओं को तेज कर दिया है।विद्युत मंत्रालय और गृह मंत्रालय दोनों ने इसे “रणनीतिक महत्व” की परियोजना बताते हुए पर्यावरण और वन संबंधी अनुमतियों में छूट की सिफारिश की है।
पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ
परियोजना को लेकर कई पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है।
- चिनाब घाटी में पहले से ही बंपर-टू-बंपर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स हैं – दुलहस्ती (390 MW), बगलिहार (890 MW) और सलाल (690 MW)।
- विशेषज्ञों ने 2016 में ही चेताया था कि इतनी बड़ी परियोजना से पारिस्थितिकी पर गंभीर असर पड़ेगा।
- परियोजना की जनसुनवाई जनवरी 2016 में हुई थी, जिससे इसका मूल पर्यावरणीय डेटा अब पुराना हो चुका था। हालांकि एनएचपीसी ने हाल के वर्षों (2022–23) में नए सीजनल अध्ययन प्रस्तुत किए हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- इंडस जल संधि (1960) भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी।
- पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) पूरी तरह भारत के नियंत्रण में हैं, जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब, झेलम) पर भारत का सीमित अधिकार था।
- सावलकोट बांध चिनाब पर बनने वाली सबसे बड़ी परियोजना होगी, जिसकी योजना 1984 में बनी थी।
- परियोजना में EAC (पर्यावरणीय स्वीकृति) और FAC (वन स्वीकृति) दोनों की मंजूरी आवश्यक है।