चांदीपुरा वायरस से मिलेगी राहत की उम्मीद, फैविपिराविर दवा ने प्री-क्लिनिकल ट्रायल में दिखाई कारगरता

भारत में बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहे चांदीपुरा वायरस (CHPV) के खिलाफ अब राहत की उम्मीद दिखाई देने लगी है। पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) द्वारा किए गए प्री-क्लिनिकल अध्ययनों में पाया गया है कि एंटीवायरल दवा फैविपिराविर इस वायरस के खिलाफ प्रभावी हो सकती है। चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस दवा ने वायरल लोड को कम किया और संक्रमित जानवरों के जीवित रहने की संभावना को बढ़ाया।
चांदीपुरा वायरस: बच्चों के लिए गंभीर खतरा
चांदीपुरा वायरस मुख्य रूप से मध्य भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है और यह 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को अधिक प्रभावित करता है। यह वायरस मस्तिष्क ज्वर (एन्सेफलाइटिस) उत्पन्न करता है, जिसके लक्षणों में तेज बुखार, उल्टी, दौरे, मानसिक भ्रम, और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं शामिल हैं। कई मामलों में रोगी कोमा में चला जाता है और मृत्यु तक हो सकती है।
वायरस का इतिहास और प्रकोप
चांदीपुरा वायरस की पहचान सबसे पहले 1965 में महाराष्ट्र के नागपुर के एक गांव में हुई थी। पहला बड़ा प्रकोप 2003 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) में देखा गया, जहां 300 से अधिक बच्चे संक्रमित हुए और मृत्यु दर 50% से अधिक थी। 2024 में गुजरात और महाराष्ट्र में फिर एक बड़ा प्रकोप सामने आया जिसे पिछले 20 वर्षों का सबसे बड़ा बताया गया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- चांदीपुरा वायरस Rhabdoviridae परिवार का सदस्य है, जिसमें रेबीज वायरस भी शामिल है।
- यह वायरस मुख्यतः सैंडफ्लाई (रेत मक्खियों) के जरिए फैलता है, विशेष रूप से वर्षा ऋतु में।
- एडीज एजिप्टी मच्छर, जो डेंगू फैलाता है, लैब परीक्षणों में इस वायरस के प्रति संवेदनशील पाया गया है।
- 2024 के प्रकोप में गुजरात में 61 और महाराष्ट्र में 3 मामले पुष्टि किए गए, सभी संक्रमित बच्चे थे।
उपचार और अनुसंधान की दिशा
फिलहाल चांदीपुरा वायरस के लिए कोई स्वीकृत दवा या टीका उपलब्ध नहीं है। इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है, जिसमें वेंटिलेशन, तरल संतुलन और दौरे रोकने की व्यवस्था शामिल है। हालांकि, फैविपिराविर दवा की प्रभावकारिता को प्री-क्लिनिकल चरण में सिद्ध किया गया है और अब इसे पशु परीक्षण के अगले चरण में जांचा जाएगा। इसके पश्चात मानव पर परीक्षण की योजना है।
रोकथाम के उपाय
इस बीमारी से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय हैं – सैंडफ्लाई की रोकथाम, स्वच्छता बनाए रखना, मक्खियों के प्रजनन स्थलों की पहचान कर उनका नाश करना, कीटनाशकों का छिड़काव, और खुले में शौच पर रोक। व्यक्तिगत स्तर पर सुरक्षात्मक कपड़े, मच्छरदानी और रिपेलेंट का उपयोग करना भी आवश्यक है।
चांदीपुरा वायरस के खिलाफ फैविपिराविर की सकारात्मक भूमिका भारत के लिए एक बड़ी उम्मीद है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों के लिए जहां यह वायरस बार-बार कहर बरपाता है। यदि यह दवा मानव परीक्षणों में भी प्रभावी सिद्ध होती है, तो यह बाल स्वास्थ्य सुरक्षा की दिशा में एक मील का पत्थर बन सकती है।