ग्रैमा: 141 वर्ष तक जीवित रहने वाली सान डिएगो चिड़ियाघर की ‘क्वीन ऑफ द ज़ू’ का निधन
सान डिएगो चिड़ियाघर की सबसे बुजुर्ग गैलापागोस कछुआ ‘ग्रैमा’ का 141 वर्ष की अनुमानित आयु में निधन हो गया। अपनी शांत और सौम्य उपस्थिति के लिए जानी जाने वाली ग्रैमा पीढ़ियों से आने वाले दर्शकों के लिए सहनशीलता, स्थायित्व और प्रकृति के प्रति प्रेम का प्रतीक बन चुकी थीं।
सान डिएगो चिड़ियाघर में जीवन और विरासत
ग्रैमा का जन्म गैलापागोस द्वीपों में हुआ था, जहां से उन्हें बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका लाया गया। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, वह 1928 या 1931 में ब्रॉन्क्स चिड़ियाघर से सान डिएगो चिड़ियाघर पहुंची थीं। उस समय वे वहां के शुरुआती गैलापागोस कछुओं में से एक थीं। दशकों तक उन्होंने अपनी शांत प्रवृत्ति, संकोची स्वभाव और विशाल शरीर से दर्शकों का मन मोह लिया।
एक सदी के बदलावों की साक्षी
अपने लंबे जीवनकाल के दौरान ग्रैमा ने दो विश्व युद्ध, बीस अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल और समाज के अनेक बदलाव देखे। कई आगंतुकों ने उन्हें अपने बचपन में देखा था और बाद में अपने बच्चों को उनसे मिलाने लाए। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि देखभाल करने वाले विशेषज्ञ उन्हें स्नेहपूर्वक “क्वीन ऑफ द ज़ू” कहा करते थे यह उपाधि उनके महत्व और लंबे साथ की गवाही देती थी।
गिरता स्वास्थ्य और अंतिम विदाई
पिछले कुछ वर्षों में ग्रैमा को उम्र से जुड़ी हड्डियों की बीमारियों ने जकड़ लिया था। उनकी स्थिति बिगड़ने पर पशु चिकित्सकों ने 20 नवंबर को उन्हें मानवीय रूप से विदा करने का निर्णय लिया। उनके निधन के बाद दुनिया भर से श्रद्धांजलियां आईं, जिनमें उन्हें प्रेरणा और संरक्षण भावना की प्रतीक के रूप में याद किया गया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- गैलापागोस कछुए सामान्यतः 100 वर्ष से अधिक जीवित रहते हैं, जबकि कैद में उनकी आयु और भी बढ़ सकती है।
- सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली गैलापागोस कछुआ हैरिएट (Harriet) थी, जिसकी आयु 175 वर्ष दर्ज की गई थी।
- गैलापागोस कछुओं की 15 उपप्रजातियाँ हैं, जिनमें से कई ‘असुरक्षित’ या ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ श्रेणी में आती हैं।
- 1965 से अब तक 10,000 से अधिक नवजात कछुए संरक्षण कार्यक्रमों के तहत जंगल में छोड़े जा चुके हैं।
संरक्षण प्रयास और वैश्विक स्थिति
गैलापागोस कछुए अब भी वैश्विक संरक्षण अभियानों के केंद्र में हैं। उनके आवास पर बढ़ते मानवीय दबाव और ऐतिहासिक शिकार के कारण यह प्रजाति निरंतर खतरे में रही है। फिलाडेल्फिया और मियामी जैसे अंतरराष्ट्रीय चिड़ियाघरों में हाल के वर्षों में सफल प्रजनन कार्यक्रमों ने नई उम्मीदें जगाई हैं।