गुजरात में मिला विशालकाय प्राचीन सांप का जीवाश्म: पृथ्वी के सबसे बड़े सर्प की परिभाषा पर पुनर्विचार
पश्चिम भारत की चट्टानी परतों से मिले जीवाश्मों ने वैज्ञानिकों को एक ऐसे प्राचीन विश्व की झलक दी है जिसे अत्यधिक गर्म जलवायु और महाद्वीपीय बदलावों ने आकार दिया था। गुजरात में हाल ही में खोजे गए इन जीवाश्म अवशेषों से संकेत मिलता है कि लगभग 47 मिलियन वर्ष पूर्व, प्रारंभिक इओसिन युग में, एक असाधारण रूप से विशाल सांप अस्तित्व में था। यह खोज न केवल भारत के भूवैज्ञानिक इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पृथ्वी पर अब तक के सबसे बड़े सर्प की परिभाषा को भी चुनौती देती है।
इओसिन युग की खोज और जलवायु संदर्भ
गुजरात में प्राप्त यह जीवाश्म प्रारंभिक इओसिन काल के तलछटी जमाव से प्राप्त हुए हैं, जो पृथ्वी के इतिहास का एक अत्यंत गर्म कालखंड था। इस समय पृथ्वी पर व्यापक उष्णकटिबंधीय जलवायु और ध्रुवीय बर्फ की लगभग अनुपस्थिति देखी गई थी। यह परिस्थितियाँ शीत-रक्तीय प्राणियों, विशेषकर सरीसृपों, के लिए आकार में अत्यधिक वृद्धि हेतु अनुकूल मानी जाती हैं। ऐसे अनुकूल वातावरण में ही इतने विशाल सांपों का विकास संभव हो पाया।
कशेरुकाओं से सांप के आकार का संकेत
वैज्ञानिकों को इस सांप के जीवाश्म के रूप में मुख्यतः कशेरुका (vertebrae) मिले हैं, जो सांपों की शरीर संरचना का सबसे महत्वपूर्ण भाग होते हैं। इन कशेरुकाओं का आकार अत्यंत बड़ा और मजबूत है, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह सांप न केवल लंबा था, बल्कि भारी और शक्तिशाली भी था।
विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि यह जीवाश्म ‘मैड्सॉइड’ (madtsoiid) नामक विलुप्त सर्प वंश से संबंधित है, जो पहले से ही पृथ्वी पर सबसे बड़े सांपों को उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है। इस सांप की हड्डियों का आकार और अनुपात बताता है कि इसमें अत्यधिक पेशीय शक्ति और विशालकाय शरीर रहा होगा।
सबसे बड़े सांप की परिभाषा पर नई सोच
सांपों के जीवाश्म प्रायः अधूरे होते हैं, जिससे उनकी वास्तविक लंबाई और आकार का अनुमान लगाना कठिन होता है। अब तक लंबाई को ही ‘सबसे बड़े सांप’ की पहचान का आधार माना जाता रहा है, लेकिन गुजरात में मिली यह खोज दर्शाती है कि भारीपन और मांसलता भी उतनी ही महत्वपूर्ण मापदंड हैं।
इस खोज से यह भी पता चलता है कि पृथ्वी पर विभिन्न समयों में और विभिन्न भूभागों में सर्पों में विशालता (gigantism) का विकास स्वतंत्र रूप से कई बार हुआ होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- इओसिन युग पृथ्वी के इतिहास की सबसे गर्म अवधियों में से एक था।
- मैड्सॉइड एक विलुप्त सांप वंश है जो विशालकाय सर्पों के लिए जाना जाता है।
- सांप की कशेरुकाएं जीवाश्म विज्ञान में शरीर के आकार का प्रमुख संकेतक होती हैं।
- भारत प्राचीन महाद्वीप गोंडवाना का हिस्सा था।
जलवायु, महाद्वीप और प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र
भूगर्भिक और पुरा-वनस्पति विज्ञान से मिले संकेत बताते हैं कि इओसिन कालीन गुजरात में नदियाँ, डेल्टा और घने वन थे, जिनमें प्रारंभिक स्तनधारी, बड़ी मछलियाँ और अन्य सरीसृप निवास करते थे। यह पारिस्थितिकी तंत्र ऐसे विशाल शिकारी सांपों के जीवन के लिए अनुकूल था।
मैड्सॉइड सांपों के जीवाश्म अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाए गए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि गोंडवाना के विभाजन से पूर्व इन महाद्वीपों के बीच भूमि संपर्क था। गुजरात की यह खोज यह दर्शाती है कि भारत जब गोंडवाना से अलग होकर उत्तर की ओर बढ़ रहा था, तब भी यहां विशाल जीव-जंतु निवास करते थे।
यह खोज न केवल जीवाश्म विज्ञान में एक नई दृष्टि प्रदान करती है, बल्कि यह भारत की प्राचीन जैव-विविधता और महाद्वीपीय विकास को समझने के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।