गुग्गा नौमी: सांपों की पूजा और सांस्कृतिक समरसता का पर्व

गुग्गा नौमी उत्तर भारत के कई राज्यों जैसे राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश में बड़े उत्साह से मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय लोक-धार्मिक पर्व है। यह पर्व न केवल सांपों की पूजा से जुड़ा है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक समरसता का भी प्रतीक माना जाता है।
गुग्गा नौमी का धार्मिक और सांस्कृतिक स्वरूप
गुग्गा नौमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर जन्माष्टमी के बाद आती है। इस पर्व की शुरुआत रक्षाबंधन के दिन से होती है और यह नौ दिनों तक चलता है। इस अवधि में श्रद्धालु राजस्थान के हनुमानगढ़ ज़िले स्थित गुग्गा मेड़ी गाँव की यात्रा करते हैं, जिसे गुग्गापीर की प्रमुख तपोभूमि माना जाता है।
इस दौरान ‘गरुड़’ कहे जाने वाले सपेरे और विष-चूसक गुग्गापीर का ‘चाहड़’ (ध्वज) लेकर मेड़ी की ओर जाते हैं। इस यात्रा में “पीर के सोले” नामक भक्ति गीत गाए जाते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में फैले ‘मरही’ नामक गुग्गा मंदिरों में मेले, पूजा और अनुष्ठान होते हैं।
गुग्गा पीर: एक लोकदेवता की कथा
गुग्गा, जिन्हें हिंदू उन्हें गुआजी और मुसलमान गूग्गा पीर या गूग्गा जाहिर पीर के नाम से पूजते हैं, राजपूतों की चौहान वंश की अग्निवंशी शाखा के राजा जewar और रानी बचन के पुत्र थे। उन्हें नीले घोड़े पर सवार दर्शाया जाता है और उनके ध्वज नीले और पीले रंग के होते हैं। मान्यता है कि उनके पास विषैले साँपों को नियंत्रित करने की दिव्य शक्ति थी।
गुग्गा पीर को विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा, बीमारी से मुक्ति और संतान प्राप्ति के लिए पूजा जाता है। माताएं उनके सामने प्रार्थना करती हैं कि उनके बच्चे स्वस्थ रहें, और संतानहीन महिलाएं संतान सुख की कामना करती हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- गुग्गा नौमी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर रक्षाबंधन के बाद आता है।
- प्रमुख पूजा स्थल: गुग्गा मेड़ी, हनुमानगढ़, राजस्थान।
- इस पर्व में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय भाग लेते हैं, जिससे यह धार्मिक समरसता का प्रतीक बनता है।
- गुग्गा पीर को सपेरों और ग्रामीण समुदायों में विशेष मान्यता प्राप्त है और उन्हें ‘सांपों के संरक्षक’ के रूप में पूजा जाता है।
धार्मिक परंपरा से आगे: एक सामाजिक एकता का प्रतीक
गुग्गा नौमी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की सामाजिक एकता और सांस्कृतिक बहुलता का जीवंत प्रतीक भी है। यह पर्व दिखाता है कि किस प्रकार लोक-धार्मिक आस्थाएं संस्थागत धर्मों की सीमाओं से आगे जाकर लोगों को जोड़ती हैं। गुग्गा की पूजा हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों द्वारा की जाती है, जो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को सशक्त करती है।
गुग्गा नौमी उस विरासत का हिस्सा है, जहाँ विविध धार्मिक पहचानें एक साझा लोक-आस्था में बदल जाती हैं। यह न केवल सांपों से रक्षा की कामना का पर्व है, बल्कि एकजुटता, सह-अस्तित्व और लोक परंपराओं के संरक्षण का उत्सव भी है।