ग़ज़ाला हाशमी: अमेरिका की उप-राज्यपाल बनीं भारत की बेटी
ग़ज़ाला फिरदौस हाशमी ने इतिहास रच दिया है। 61 वर्षीय डेमोक्रेटिक नेता, जो हैदराबाद के मल्कापेट में जन्मी थीं, अमेरिका के वर्जीनिया राज्य की उप-राज्यपाल (Lieutenant Governor) चुनी गई हैं। यह उपलब्धि न केवल भारतीय प्रवासी समुदाय के लिए गौरव का क्षण है, बल्कि अमेरिकी राजनीति में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की दिशा में एक बड़ा कदम भी है।
हैदराबाद से वर्जीनिया की सत्ता तक
ग़ज़ाला हाशमी का जन्म 1964 में हैदराबाद के मल्कापेट में हुआ था। जब वह मात्र चार वर्ष की थीं, तब उनके माता-पिता — ज़िया और तनवीर हाशमी — अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में जा बसे। उन्होंने अपनी शिक्षा वहीं पूरी की और बाद में वर्जीनिया को अपना स्थायी निवास बना लिया।
हालांकि उन्होंने अपना अधिकांश जीवन अमेरिका में बिताया है, लेकिन वह हमेशा अपने भारतीय मूल, खासकर हैदराबाद से अपने संबंधों को लेकर भावुक रही हैं। आज भी उनके रिश्तेदार भारत में रहते हैं, और वह समय-समय पर अपनी जड़ों की चर्चा करती हैं।
अमेरिकी राजनीति में भारतीय महिला की दस्तक
ग़ज़ाला हाशमी ने 2019 में तब सुर्खियाँ बटोरी थीं जब वह वर्जीनिया स्टेट सीनेट के लिए चुनी जाने वाली पहली मुस्लिम महिला बनीं। उन्होंने 10वें डिस्ट्रीक्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और समावेशिता पर विशेष ध्यान केंद्रित किया।
अब, उप-राज्यपाल बनने के साथ उन्होंने इतिहास में कई ‘पहली बार’ दर्ज किए हैं:
- पहली मुस्लिम महिला
- पहली भारतीय मूल की महिला
- पहली दक्षिण एशियाई अमेरिकी
जो वर्जीनिया की इस उच्च पद पर पहुंची हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- • नाम: ग़ज़ाला फिरदौस हाशमी
- • आयु: 61 वर्ष
- • जन्म: 1964, मल्कापेट, हैदराबाद (भारत)
- • वर्तमान पद: उप-राज्यपाल, वर्जीनिया (डेमोक्रेट पार्टी)
- • ऐतिहासिक उपलब्धियाँ: पहली मुस्लिम, भारतीय मूल और दक्षिण एशियाई अमेरिकी महिला इस पद पर
- • पूर्व भूमिका: वर्जीनिया स्टेट सीनेटर (10वां जिला, 2019 में निर्वाचित)
- • प्रमुख क्षेत्र: शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, और सामाजिक समावेशन
आशा और प्रतिनिधित्व की प्रतीक
ग़ज़ाला हाशमी का यह सफर भारतीय-अमेरिकी समुदाय की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी का प्रमाण है। मल्कापेट की संकरी गलियों से लेकर वर्जीनिया के सत्ता गलियारों तक की यह यात्रा न केवल परिश्रम और लगन की कहानी है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि शिक्षा और आत्मबल के सहारे सीमाएं पार की जा सकती हैं।