गंगा के मैदानी क्षेत्रों में पायी गयी वायुमंडलीय अमोनिया की अत्यधिक मात्रा : IIT खड़गपुर

गंगा के मैदानी क्षेत्रों में पायी गयी वायुमंडलीय अमोनिया की अत्यधिक मात्रा : IIT खड़गपुर

हाल ही में देश के अग्रणी शिक्षण संस्थान IIT खड़गपुर ने एक अध्ययन किया, इस अध्ययन में यह पाया गया कि भारत में गंगा के मैदानी क्षेत्रों में वायुमंडलीय अमोनिया की मात्रा अत्यधिक है। वायुमंडलीय अमोनिया (NH3) मुख्य रूप से अत्यधिक कृषि गतिविधियों के कारण उत्पन्न होती है, इसमें उर्वरक, कीटनाशक और नाइट्रोजन युक्त खाद का योगदान शामिल है।

मुख्य बिंदु  

किसी एक क्षेत्र में लंबे समय तक गहन कृषि गतिविधियों के कारण वायुमंडल और भूमि के बीच नाइट्रोजन / अमोनिया विनिमय का एक चक्र स्थापित होता है। पशु पालन, बायोमास के जलने, आग और जीवाश्म ईंधन के दहन से भी वायुमंडलीय अमोनिया में वृद्धि होती है। कुछ अध्ययनों में यह पाया गया है कि वायुमंडलीय अमोनिया महीन एरोसोल कणों में परिवर्तित हो जाता है। गौरतलब है कि यह CO2, धूल और सल्फर ऑक्साइड जैसे अन्य प्रदूषकों के संपर्क में एक विशेष इलाके में हवा की गुणवत्ता को खराब करने में मुख्य भूमिका निभाता है।

आईआईटी खड़गपुर के अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

इस अध्ययन में कई यूरोपीय शोधकर्ताओं और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे के शोधकर्ताओं ने भी भाग लिया था। इस अध्ययन के अनुसार, उर्वरक के अत्यधिक उत्पादन के साथ-साथ अत्यधिक कृषि गतिविधियों के कारण गंगा का मैदान NH3 का एक हब बना गया है। शोधकर्ताओं ने उर्वरक उत्पादन, NH3 और तापमान के बीच संबंध के बारे में अधिक जानने  के लिए उपग्रह डेटा का इस्तेमाल किया। शोधकर्ताओं ने वर्ष 2008 से 2016 तक के आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि गर्मी-मानसून के मौसम में वायुमंडलीय अमोनिया में प्रति वर्ष 0.08% की दर से वृद्धि हो रही है।

Originally written on December 7, 2020 and last modified on December 7, 2020.

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