क्या है ‘पिंक टैक्स’? महिलाओं से जुड़े छिपे हुए खर्च का सच

क्या आपने कभी गौर किया है कि एक ही तरह के बाल कटवाने के लिए आपकी बेटी की फीस आपके बेटे से ज़्यादा होती है? क्या कैंची लड़कियों की चोटी या रिबन देखकर ज़्यादा चार्ज करती है? नहीं, यह कोई तकनीकी अंतर नहीं, बल्कि ‘जेंडर आधारित मूल्य भेदभाव’ का एक उदाहरण है — जिसे हम पिंक टैक्स के नाम से जानते हैं। यह टैक्स असली टैक्स नहीं है, लेकिन इसका आर्थिक बोझ असल है, खासकर उन परिवारों पर जहाँ महिलाएँ आय अर्जक नहीं हैं।

पिंक टैक्स क्या है?

‘पिंक टैक्स’ कोई सरकारी टैक्स नहीं है, न ही इसे किसी नियम के तहत लागू किया जाता है। यह एक मूल्य निर्धारण की प्रवृत्ति है जिसमें महिलाओं के लिए बनाए गए उत्पादों या सेवाओं की कीमत पुरुषों के समकक्ष वस्तुओं से अधिक होती है, चाहे कार्यक्षमता समान ही क्यों न हो।
इसमें शामिल वस्तुएँ हैं:

  • बाल कटवाना और सैलून सेवाएँ
  • डिओडोरेंट, शैंपू, कंडीशनर, स्किनकेयर और ब्यूटी प्रोडक्ट्स
  • गुलाबी रंग के खिलौने
  • महिलाओं के कपड़े, टी-शर्ट, जींस आदि

वैश्विक परिदृश्य

‘पिंक टैक्स’ शब्द की उत्पत्ति 1994 में अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया राज्य में मानी जाती है। एक अध्ययन के अनुसार:

  • महिलाओं के पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स 13% महंगे होते हैं।
  • महिलाओं के कपड़े और एक्सेसरीज़ 7% से 8% तक महंगे पाए गए।
  • ड्राइक्लीनिंग में महिलाओं की शर्ट की कीमत पुरुषों की तुलना में 90% अधिक होती है।
  • यूके में, महिलाओं के डिओडोरेंट की कीमत 8.9% और फेस मॉइश्चराइज़र की कीमत 34.28% अधिक पाई गई।

2017 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने सदस्य देशों से इस मूल्य भेदभाव को समाप्त करने की अपील की थी।

भारत में पिंक टैक्स की स्थिति

हालांकि भारत में पिंक टैक्स पर अब तक व्यापक चर्चा नहीं हुई है, लेकिन यह समस्या यहाँ भी मौजूद है। इंटरनेशनल फाइनेंस स्टूडेंट्स एसोसिएशन (IFSA) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 67% लोगों ने ‘पिंक टैक्स’ शब्द कभी सुना ही नहीं है।
2018 में सरकार ने सेनेटरी नैपकिन और टैम्पोन पर जीएसटी हटा दिया, जो पहले 12% था। इसी निर्णय ने पहली बार व्यापक स्तर पर इस विषय को महिलाओं के बीच चर्चा में लाया।

पिंक टैक्स से कैसे बचें?

  • जेंडर-न्यूट्रल प्रोडक्ट्स का चयन करें। अक्सर पुरुषों के लिए बने प्रोडक्ट्स सस्ते होते हैं लेकिन गुणों में समान या बेहतर होते हैं।
  • प्रति यूनिट कीमत की तुलना करें, जैसे प्रति मि.ली. या प्रति ग्राम की दर से उत्पाद चुनें।
  • सैलून में मोलभाव करें और ऐसे स्थानों पर जाएँ जहाँ पुरुष और महिलाओं के लिए एक जैसी कीमत हो।
  • ऑनलाइन कीमतों की तुलना करें — पुरुषों और महिलाओं के संस्करणों की कीमत और मात्रा दोनों को जांचें।
  • जागरूक स्टार्टअप और ब्रांड्स को सपोर्ट करें जो जेंडर-न्यूट्रल और किफायती विकल्प प्रस्तुत करते हैं।
  • उपभोक्ता अधिकार समूहों का समर्थन करें जो निष्पक्ष मूल्य निर्धारण के लिए अभियान चलाते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ‘पिंक टैक्स’ कोई आधिकारिक कर नहीं, बल्कि मूल्य निर्धारण की प्रवृत्ति है।
  • अमेरिका में यह शब्द 1994 में चर्चित हुआ था।
  • भारत में सेनेटरी नैपकिन को 2018 में जीएसटी से मुक्त किया गया था।
  • NCDRC (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) ने कंपनियों को निष्पक्ष मूल्य नीति अपनाने की सलाह दी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *