क्या बलूचिस्तान वाकई पाकिस्तान से अलग हो रहा है? मीर यार बलोच के नेतृत्व में उभरे स्वतंत्रता आंदोलन के राजनीतिक और भू-राजनीतिक मायने क्या है?

क्या बलूचिस्तान वाकई पाकिस्तान से अलग हो रहा है? मीर यार बलोच के नेतृत्व में उभरे स्वतंत्रता आंदोलन के राजनीतिक और भू-राजनीतिक मायने क्या है?

14 मई 2025 को बलूच कार्यकर्ता और ‘फ्री बलूच मूवमेंट’ के प्रमुख मीर यार बलोच ने सोशल मीडिया पर बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की प्रतीकात्मक घोषणा करते हुए लिखा: “बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है।” इस बयान के बाद #RepublicOfBalochistan सोशल मीडिया पर वैश्विक स्तर पर ट्रेंड करने लगा। मीर यार बलोच न केवल एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, बल्कि वे बलूच राजनीतिक चेतना के एक नए प्रतीक बनकर उभरे हैं, जिन्होंने अपने पोस्ट में बलूच जनता के लिए दूतावास खोलने की मांग भारत से की और संयुक्त राष्ट्र से शांति सेना भेजने की अपील की।

भावनात्मक संदर्भ और सांस्कृतिक विरासत

मीर यार बलोच का एक विशेष उल्लेखनीय बयान 1947 से जुड़ा किस्सा था: एक हिंदू व्यापारी अपनी दुकान बलूच मित्र के हवाले कर भारत चला गया था, और वह बलूच आज भी उस दुकान की रक्षा कर रहा है। यह उदाहरण केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि यह संदेश देता है कि बलूच आंदोलन सांप्रदायिक नहीं है, बल्कि यह जातीय पहचान, सांस्कृतिक स्वाभिमान और मानवाधिकारों की रक्षा की लड़ाई है।

बलूच लिबरेशन आर्मी का सैन्य मोर्चा

राजनीतिक बयानबाज़ी के समानांतर बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ‘ऑपरेशन हीरोफ 2.0’ के तहत 78 हमले करके पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र को चुनौती दी। कई सैन्य ठिकानों पर हमले हुए और कुछ इलाकों में बलूच झंडा फहराया गया। BLA की कार्रवाइयाँ अब पारंपरिक विद्रोह से अधिक समन्वित और रणनीतिक दिख रही हैं।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और संकट

पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ा दी है। लेकिन मीर यार बलोच का यह दावा कि पाक सेना की 98% जनसंख्या पंजाबी है और बलूच भाषा न जानने के कारण अनुवादकों पर निर्भर है, स्थानीय स्तर पर पाकिस्तान की वैधता पर सवाल खड़े करता है। साथ ही बलूचिस्तान की खनिज संपदा और ग्वादर बंदरगाह के दोहन को लेकर असंतोष चरम पर है।

भारत और पीओके को लेकर मीर यार की नीति

मीर यार बलोच ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के संदर्भ में भारत की नीति का समर्थन किया है और पाकिस्तान पर ‘मानव ढाल’ बनाने का आरोप लगाया है। यह संकेत है कि बलूच नेतृत्व भारत के रणनीतिक रुख को न केवल मान्यता दे रहा है बल्कि अपनी मुहिम के लिए सहयोग भी चाहता है।

भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य: CPEC और चीन की चुनौती

बलूचिस्तान चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हृदयस्थल है। यदि बलूच आंदोलन को क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलता है, तो इससे CPEC को सीधा खतरा होगा। चीन के लिए यह निवेश और भू-सुरक्षा दोनों का संकट बन सकता है। वहीं भारत के लिए यह रणनीतिक अवसर भी है और कूटनीतिक संतुलन का चुनौतीपूर्ण क्षेत्र भी।

स्वतंत्रता की वैधानिकता और अंतरराष्ट्रीय मान्यता

हालांकि स्वतंत्रता की घोषणा प्रतीकात्मक है और इसे किसी भी राष्ट्र या अंतरराष्ट्रीय संस्था से अभी तक मान्यता नहीं मिली है, लेकिन यह आंदोलन अब केवल एक विद्रोह नहीं बल्कि एक पूर्ण-कालिक राजनीतिक विमर्श बनता जा रहा है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो यह पाकिस्तान के संघीय ढांचे को अस्थिर कर सकती है।

Originally written on May 15, 2025 and last modified on May 15, 2025.

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