कॉफी के धब्बे से जहर की पहचान: भारतीय वैज्ञानिकों की अनोखी खोज

कॉफी के धब्बे से जहर की पहचान: भारतीय वैज्ञानिकों की अनोखी खोज

कॉफी के कप से मेज़ पर गिरा एक साधारण सा धब्बा अब वैज्ञानिकों के लिए ज़हर की पहचान का माध्यम बन गया है। रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट (RRI), जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित है, के वैज्ञानिकों ने कॉफी-स्टेन इफेक्ट का उपयोग करते हुए एक शक्तिशाली और किफायती तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के माध्यम से भोजन और पानी में मौजूद खतरनाक रसायनों की पहचान एक ट्रिलियन में एक भाग तक की अल्प मात्रा में भी की जा सकती है।

कॉफी-स्टेन इफेक्ट का वैज्ञानिक उपयोग

जब कॉफी की कुछ बूंदें सूखती हैं, तो उनके किनारे पर एक गहरा वृत्त बनता है — यही “कॉफी-स्टेन इफेक्ट” कहलाता है। इसका कारण यह है कि तरल में मौजूद कण सूखने के साथ किनारों की ओर खिसक जाते हैं और वहीं जमा हो जाते हैं। RRI के वैज्ञानिकों ने इस स्वाभाविक प्रक्रिया का लाभ उठाते हुए सोने की नैनो रॉड्स — जो कुछ नैनोमीटर लंबी सूक्ष्म संरचनाएँ होती हैं — का उपयोग किया और सिलिकॉन सतहों पर घने, व्यवस्थित रिंग बनाए।
जैसे ही पानी वाष्पित होता है, ये नैनो रॉड्स बूंद के किनारों पर एकत्रित हो जाते हैं और अत्यंत संवेदनशील “हॉट स्पॉट्स” बनाते हैं जो प्रकाश संकेतों को कई गुना बढ़ा देते हैं। इन संरचनाओं पर लेज़र किरण डालने पर वैज्ञानिक बेहद कम मात्रा में मौजूद विषैले पदार्थ, जैसे कि रोडामाइन बी, का भी पता लगा सकते हैं।

रोडामाइन बी की पहचान में क्रांतिकारी सफलता

रोडामाइन बी एक फ्लोरोसेंट सिंथेटिक डाई है जिसका उपयोग कपड़ा और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में होता है, लेकिन खाद्य पदार्थों में इसका उपयोग प्रतिबंधित है क्योंकि यह त्वचा, आंखों और श्वसन प्रणाली के लिए हानिकारक होता है। यह अक्सर जल स्रोतों में इस हद तक पतला होता है कि सामान्य तकनीकों से इसकी पहचान नहीं हो पाती।
RRI के वैज्ञानिकों ने बताया कि कम नैनो रॉड एकाग्रता में वे केवल उच्च मात्रा में रोडामाइन बी का पता लगा पाते थे — जैसे एक गिलास पानी में एक बूंद डाई। लेकिन जैसे-जैसे नैनो रॉड्स की घनता बढ़ाई गई, तकनीक की संवेदनशीलता करीब एक मिलियन गुना बढ़ गई और अब एक ट्रिलियन में एक भाग की मात्रा भी पकड़ी जा सकती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • कॉफी-स्टेन इफेक्ट को पहली बार वैज्ञानिक रूप से 1997 में समझाया गया था।
  • Surface-Enhanced Raman Spectroscopy (SERS) तकनीक प्रकाश के साथ पदार्थ की प्रतिक्रिया का उपयोग कर अति सूक्ष्म विश्लेषण करती है।
  • रोडामाइन बी को भारत सहित कई देशों में खाद्य पदार्थों में उपयोग करने पर प्रतिबंध है।
  • RRI का यह नवाचार भविष्य में हैंडहेल्ड रमन स्पेक्ट्रोमीटर के माध्यम से फील्ड में विषैले तत्वों की जांच को संभव बना सकता है।
Originally written on October 16, 2025 and last modified on October 16, 2025.

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