कैंसर मरीजों को खतरे में डाल रही घटिया कीमोथेरेपी दवाएं

हाल ही में एक चौंकाने वाले वैश्विक अध्ययन ने खुलासा किया है कि दुनिया भर में कैंसर के इलाज में प्रयुक्त कई प्रमुख कीमोथेरेपी दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में असफल पाई गई हैं। इन दवाओं में सक्रिय घटक या तो बहुत कम था या बहुत अधिक, जिससे इलाज प्रभावहीन या जानलेवा हो सकता है। इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि विश्व स्तर पर दवा सुरक्षा तंत्र में गंभीर खामियां मौजूद हैं, जो मरीजों और सरकारों दोनों को भारी नुकसान पहुंचा रही हैं।
कम और अधिक मात्रा में सक्रिय तत्व — दोनों खतरनाक
रिपोर्ट के अनुसार, कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली सात आम दवाओं — सिसप्लैटिन, साइक्लोफॉस्फेमाइड, डॉक्सोरुबिसिन, इफोस्फेमाइड, ल्यूसोवोरिन, मेथोट्रेक्सेट और ऑक्सालिप्लैटिन — में से लगभग 20% सैंपल गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहे। इन दवाओं में सक्रिय तत्व की मात्रा या तो निर्धारित सीमा (88%-112%) से काफी कम या अधिक पाई गई। कुछ दवाओं में तो इतना कम सक्रिय घटक था कि फार्मासिस्टों ने इसे “कोई इलाज न देने” के समान बताया। वहीं, कुछ में इतना अधिक सक्रिय घटक था कि इससे अंगों को गंभीर क्षति या मृत्यु तक हो सकती है।
भारत निर्मित दवा सबसे खराब प्रदर्शन में
इस अध्ययन में सबसे खराब प्रदर्शन भारतीय कंपनी ‘वीनस रेमेडीज़’ की साइक्लोफॉस्फेमाइड दवा का पाया गया। इसके सभी आठ सैंपल परीक्षण में विफल रहे, जिनमें से छह में सक्रिय घटक आधे से भी कम मात्रा में था। एक सैंपल में तो केवल 25% सक्रिय घटक ही मौजूद था। यह दवा इथियोपिया सहित छह देशों को निर्यात की गई थी।
अफ्रीकी देशों में बढ़ रहा कैंसर, पर घटिया इलाज
अफ्रीकी देशों, विशेषकर उप-सहारा क्षेत्र में, पिछले तीन दशकों में कैंसर के मामले दोगुने हो चुके हैं। यहां कीमोथेरेपी दवाओं की भारी मांग है, लेकिन गुणवत्ता नियंत्रण की कमी मरीजों को भारी नुकसान पहुंचा रही है। इथियोपिया के डॉक्टरों ने बताया कि कई मरीजों में अचानक इलाज का असर रुक जाता है या कोई दुष्प्रभाव ही नहीं होता, जिससे दवा की गुणवत्ता पर संदेह होता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कैंसर हर साल करीब 1 करोड़ लोगों की जान लेता है — हर छह में से एक मृत्यु का कारण।
- WHO द्वारा बताए गए “essential medicines” में ये सभी कीमोथेरेपी दवाएं शामिल हैं।
- जेनेरिक दवाएं पेटेंट समाप्त होने के बाद बनाई जाती हैं और इनकी लागत मूल दवा से काफी कम होती है।
- दवा की सक्रिय तत्व की मात्रा में 88% से 112% के बीच की सीमा को मानक माना जाता है।
इन चिंताजनक निष्कर्षों से स्पष्ट है कि सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता केवल संख्या में नहीं, गुणवत्ता में भी होनी चाहिए। खासकर उन क्षेत्रों में, जहां कैंसर का इलाज सीमित संसाधनों पर निर्भर है, घटिया दवाएं मरीजों की जान के लिए खतरा बन जाती हैं। अब समय आ गया है कि वैश्विक दवा नियामक और निर्माता गुणवत्ता नियंत्रण को सर्वोच्च प्राथमिकता दें और यह सुनिश्चित करें कि जीवन रक्षक दवाएं वास्तव में जीवन बचाएं।