कैंसर के इलाज में नई क्रांति: भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित की ‘नैनो-कप’ संरचना वाली थैरेपी तकनीक

भारतीय वैज्ञानिकों ने कैंसर उपचार के लिए एक अत्याधुनिक तकनीक विकसित की है, जो अब तक की पारंपरिक पद्धतियों की जटिलता और विषाक्तता से मुक्त है। यह तकनीक विशेष प्रकार की “सेमी-शेल” (semi-shell) संरचना वाले नैनोपार्टिकल्स का एक-चरणीय संश्लेषण है, जो फोटोथर्मल थैरेपी (Photothermal Therapy – PTT) के माध्यम से कैंसर कोशिकाओं को प्रभावी ढंग से समाप्त कर सकते हैं।

क्या है यह नई तकनीक और कैसे काम करती है?

इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (INST), मोहाली के वैज्ञानिकों ने टाटा मेमोरियल सेंटर के ACTREC और IIT बॉम्बे के सहयोग से यह तकनीक विकसित की है। इसमें ज़ीफ़-8 (ZIF-8) नामक मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क को ‘नैदानिक बलिदानी टेम्पलेट’ के रूप में प्रयोग किया गया है। इसके भीतर हल्के अवकरण कारक जैसे विटामिन C के प्रयोग से कमरे के तापमान पर ही गोल्ड नैनोपार्टिकल्स को विकसित किया गया, जिससे नैनो-कप आकार के सेमी-शेल बनते हैं।
इन संरचनाओं को पॉलीएथिलीन ग्लाइकोल (PEG) से लेपित किया गया, जिससे यह अधिक सुरक्षित, स्थिर और रक्त-अनुकूल हो जाते हैं। यह PEGylation प्रक्रिया इन संरचनाओं की पानी में घुलनशीलता, क्रायो-प्रिज़र्वेशन, और शरीर में प्रणालीगत सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

उपचार की प्रभावशीलता और संभावनाएं

इन सेमी-शेल्स ने मेटास्टेटिक स्तन कैंसर ट्यूमर को खत्म करने में अत्यधिक प्रभावशीलता दिखाई है। “फोटोथर्मल एब्लेशन” नामक प्रक्रिया के तहत नैनोपार्टिकल्स को ट्यूमर साइट तक पहुंचाया जाता है, जहां नज़दीकी अवरक्त (NIR) प्रकाश डाला जाता है। यह प्रकाश ऊर्जा गर्मी में परिवर्तित होती है और ट्यूमर कोशिकाओं को समाप्त कर देती है। इस तकनीक ने प्रीक्लिनिकल चूहा मॉडल में ट्यूमर पुनरावृत्ति को रोका और जीवन प्रत्याशा बढ़ाई।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ZIF-8: एक जैव-अनुकूल धातु-कार्बनिक फ्रेमवर्क जो टेम्पलेट के रूप में उपयोग हुआ।
  • PEGylation: पॉलीएथिलीन ग्लाइकोल की परत से संरचना की सतह को ढकना ताकि वह रक्त और शरीर में अधिक सुरक्षित रहे।
  • फोटोथर्मल थैरेपी: एक ऐसी तकनीक जिसमें प्रकाश को गर्मी में परिवर्तित करके कैंसर कोशिकाओं को समाप्त किया जाता है।
  • Communication Chemistry: नेचर समूह की जर्नल जिसमें यह शोध प्रकाशित हुआ है।

यह शोध पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक सरल, सुरक्षित और लागत प्रभावी है। इसके अलावा, इसका उपयोग न केवल फोटोथर्मल थेरेपी बल्कि SERS बायोसेंसिंग जैसे उन्नत जैव-चिकित्सीय अनुप्रयोगों में भी किया जा सकता है। भविष्य में इस तकनीक को केमो-फोटोथर्मल थैरेपी और अन्य कैंसर प्रकारों के लिए भी विस्तार दिया जा सकता है। यह शोध भारत को कैंसर उपचार के क्षेत्र में विश्व स्तर पर अग्रणी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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