के. शेखर: मलयालम सिनेमा के अनुभवी कला निर्देशक की आवाज़ें
प्रसिद्ध मलयालम सिनेमा के अनुभवी कला निर्देशक के. शेखर का निधन 72 वर्ष की आयु में उनके आवास, तिरुवनंतपुरम में हो गया। उनके परिवार ने रविवार को इस दुखद समाचार की पुष्टि की। भारतीय सिनेमा के सबसे कल्पनाशील तकनीकी दिमागों में शुमार के. शेखर ने अपने करियर में नवाचार, उत्कृष्ट शिल्प कौशल और अनोखे दृश्यात्मक डिजाइनों का अविस्मरणीय योगदान दिया। उनकी कला ने केवल मलयालम सिनेमा को ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय फिल्मों के दृश्य निर्माण को एक नया आयाम दिया।
शुरुआत और कैरियर की यात्रा
के. शेखर ने 1982 में मलयालम सिनेमा में प्रवेश किया, जब उन्होंने “पदयोत्तम” फिल्म में परिधान और प्रचार डिज़ाइनर के रूप में काम किया। यह फिल्म, जो अपनी तकनीकी विशेषताओं के लिए जानी जाती है, ने शेखर को सिनेमा में एक सक्रिय तकनीकी कलाकार के रूप में स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने “नोकेथधूरथु कन्नुम नत्तु” और “एक से पहले शून्य तक” (Onnu Muthal Poojyam Vare) जैसी प्रशंसित फिल्मों पर काम किया, जहां उनके असाधारण दृश्यात्मक सोच को काफी सराहा गया।
उनके कैरियर की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि में से एक रही “माय डियर कुट्टीचाथान” (1984), भारत की पहली 3D फीचर फिल्म, जिसके दृश्यात्मक नवाचारों ने भारतीय सिनेमा में प्रायोगिक तकनीकों की नई दिशा स्थापित की।
व्यावहारिक दृश्य नवाचार का पायनियर
के. शेखर को सबसे अधिक “माय डियर कुट्टीचाथान” फिल्म में एंटी-ग्रैविटी रूम के डिज़ाइन के लिए याद किया जाता है। यह दृश्य विशेष रूप से गीत “आलिप्पज़्हम पेरुक्कान” के दौरान दिखाया गया, जहां कलाकार दीवारों और छत पर चलते हुए प्रतीत होते हैं। इस प्रभाव को कंप्यूटर या डिजिटल प्रभावों के उपयोग के बिना प्राप्त किया गया था। पूरी सेटिंग को रोटेटिंग स्टील रिग पर बनाया गया था, जिससे एक वास्तविक गुरुत्वहीनता का भ्रम उत्पन्न हुआ। इसके साथ ही हल्के स्टाइरोफोम प्रॉप्स ने दृश्यों की वास्तविकता को और भी बढ़ाया।
यह आधुनिक तकनीकों से पहले का एक उत्कृष्ट उदाहरण था, जहाँ व्यावहारिक सेट डिज़ाइन और यांत्रिक कौशल ने फिल्म निर्माण में अद्भुत दृश्य अनुभव दिया।
समय से बहुत आगे की सोच
एंटी-ग्रैविटी रूम का विचार उन्होंने “2001: ए स्पेस ओडिसी” से प्रेरणा लेकर विकसित किया था, जिसे प्रसिद्ध निर्देशक स्टैनली क्यूब्रिक द्वारा निर्देशित किया गया था। यह तकनीक उन्होंने लगभग 26 साल पहले लागू की, जब हॉलीवुड ने इसी तरह की तकनीकों को “इंसेप्शन” (Christopher Nolan) में फिर से इस्तेमाल किया, और वह भी बिना किसी कंप्यूटर-जनरेटेड इमेजरी के। आज यह व्यावहारिक तकनीक वैश्विक सिनेमा में व्यापक रूप से उपयोग होती है।
नए युग के फिल्म निर्माताओं पर प्रभाव
फिल्म निर्देशक बेसिल जोसफ ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि “माय डियर कुट्टीचाथान” की भव्यता ने उन्हें और उनकी फिल्मों, जैसे “मिन्नल मुरली”, को प्रेरित किया। शेखर की कल्पना और इंजीनियरिंग का संयोजन आज भी फिल्मकारों को प्रेरित करता है, जो यह साबित करता है कि उनकी सोच और तकनीक अस्थायी नहीं, बल्कि कालजयी हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- “माय डियर कुट्टीचाथान” भारत की पहली 3D फीचर फिल्म थी, जो 1984 में रिलीज़ हुई थी।
- गुरुत्वहीनता प्रभाव के लिए रोटेटिंग सेट का उपयोग डिजिटल तकनीकों के पहले भी किया जाता रहा है।
- स्टैनली क्यूब्रिक ने 1960 के दशक में रोटेटिंग सेट तकनीक को लोकप्रिय बनाया था।
- बाद में हॉलीवुड में “इंसेप्शन” जैसी फिल्मों में इसी तरह की यांत्रिक तकनीकों का उपयोग हुआ।
के. शेखर की कलाकारी और तकनीकी दृष्टिकोण ने भारतीय सिनेमा को नए आयाम दिए। उनके द्वारा स्थापित मानदंड और नवाचार सिनेमा के भविष्य के कलाकारों और तकनीशियनों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।