केरल हाईकोर्ट का निर्देश: अश्टमुडी वेटलैंड के संरक्षण हेतु बने प्रबंधन इकाई

केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में अश्टमुडी वेटलैंड के संरक्षण के लिए राज्य सरकार और राज्य वेटलैंड प्राधिकरण (SWAK) को दो महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने आदेश दिया कि अधिसूचना जारी होने के दो माह के भीतर एक ‘अश्टमुडी वेटलैंड प्रबंधन इकाई’ गठित की जाए और छह माह के भीतर इस वेटलैंड के लिए एक समन्वित प्रबंधन योजना को अंतिम रूप दिया जाए।
पर्यावरणीय संकट और जनहित याचिका
यह निर्देश मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति बसंत बालाजी की खंडपीठ ने उस जनहित याचिका पर विचार करते हुए दिया, जिसमें वकील बोरिस पॉल और कोल्लम स्थित हेल्प फाउंडेशन ने झील में कचरा फेंके जाने और अतिक्रमण के खिलाफ हस्तक्षेप की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि इससे पानी प्रदूषित हो रहा है और मैन्ग्रोव वन नष्ट हो रहे हैं।
अश्टमुडी झील की स्थिति
अश्टमुडी झील केरल की दूसरी सबसे बड़ी वेटलैंड है और इसे 2002 में ‘रामसर स्थल’ घोषित किया गया था। एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, इसका क्षेत्रफल 61.40 वर्ग किमी से घटकर 34 वर्ग किमी रह गया है और गहराई भी कई स्थानों पर आधे मीटर से कम हो गई है। प्रदूषण, अतिक्रमण, गाद जमा होना, पर्यटन से उत्पन्न कचरा, बालू खनन, अनियंत्रित निर्माण और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग इसकी स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं।
स्वास्थ्य और जीवन यापन पर प्रभाव
2020-2022 में केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए सर्वेक्षण में बताया गया कि क्षेत्र में खुले में शौच, शौचालय का अपशिष्ट सीधे झील में गिराना और खराब कचरा प्रबंधन गंभीर स्वास्थ्य संकट उत्पन्न कर रहे हैं। इसके अलावा, झील में गिरता मानव मल, रासायनिक अपशिष्ट और अस्पताली व व्यावसायिक कचरा मछली प्रजनन क्षेत्रों को नष्ट कर रहा है, जिससे मछुआरे समुदाय का जीवन यापन संकट में है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अश्टमुडी झील को 2002 में ‘रामसर स्थल’ का दर्जा मिला था।
- 2023 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने केरल सरकार पर ₹10 करोड़ का जुर्माना लगाया था।
- ‘रामसर कन्वेंशन’ एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जो वेटलैंड्स के संरक्षण और टिकाऊ उपयोग को बढ़ावा देती है।
- वेटलैंड प्रबंधन के लिए दो अनिवार्य तत्व हैं: एक समर्पित प्राधिकरण और स्थल-विशिष्ट वैज्ञानिक प्रबंधन योजना।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि नवगठित प्रबंधन इकाई एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाए, जिसमें बैठक की आवृत्ति, समन्वय की विधियां और कार्य स्थल की जानकारी हो। साथ ही SWAK की वेबसाइट पर एक समर्पित पृष्ठ या स्वतंत्र वेबसाइट होनी चाहिए, जहाँ आम जनता प्रतिक्रिया और ऑडियो-विजुअल सामग्री साझा कर सके।
यह कदम न केवल केरल के लिए बल्कि समूचे भारत में वेटलैंड संरक्षण की दिशा में एक अनुकरणीय मिसाल बन सकता है।