केरल में ‘ब्रेन-ईटिंग अमीबा’ का कहर: स्वास्थ्य मॉडल के लिए एक चेतावनी

अगस्त 2025 की शुरुआत में केरल के कोझिकोड जिले के एक गांव में एक मासूम बच्ची अनया की अचानक मौत ने राज्य को एक अप्रत्याशित स्वास्थ्य संकट की ओर घुमा दिया। चौथी कक्षा की छात्रा अनया को मामूली बुखार और उल्टी के लक्षणों के साथ भर्ती कराया गया, लेकिन 24 घंटे के भीतर उसकी मृत्यु हो गई। परीक्षणों से पता चला कि वह अमीबिक मेनिन्जोएंसेफेलाइटिस का शिकार हुई थी — एक दुर्लभ लेकिन अत्यंत घातक मस्तिष्क संक्रमण, जिसे Naegleria fowleri, या ‘ब्रेन-ईटिंग अमीबा’, के रूप में जाना जाता है।

‘ब्रेन-ईटिंग अमीबा’: एक अदृश्य खतरा

Naegleria fowleri गर्म ताजे पानी में पनपता है, जैसे तालाब, कुएं और नदी का पानी। यह अमीबा नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर मस्तिष्क तक पहुंचता है और कुछ ही दिनों में जानलेवा संक्रमण पैदा करता है। वैश्विक स्तर पर इस संक्रमण — प्राइमरी अमीबिक मेनिन्जोएंसेफेलाइटिस (PAM) — की पहचान 1965 में ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में हुई थी, और तब से यह अमेरिका, पाकिस्तान, चीन, जापान और लैटिन अमेरिका जैसे कई देशों में फैल चुका है।
भारत में, अब तक यह रोग केवल इक्का-दुक्का राज्यों जैसे तमिलनाडु, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से सामने आया था। केरल में पहली मौत 2016 में दर्ज हुई, लेकिन 2024 में यह संख्या 29 तक पहुंच गई। खास बात यह रही कि इनमें से 24 मरीजों को केरल ने सफलतापूर्वक बचा लिया — यह उपलब्धि दुनियाभर में इस संक्रमण की 97% मृत्यु दर के मुकाबले उल्लेखनीय है।

संक्रमण के कारण और समुदायिक जोखिम

स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस अचानक उभार के पीछे तीन प्रमुख कारक देख रहे हैं: जलवायु परिवर्तन से बढ़ता तापमान, जल स्रोतों में मल-मूत्र और जैविक अपशिष्ट का मिलना, और असुरक्षित पारंपरिक व्यवहार। मलप्पुरम जिले में एक युवक की मौत के बाद गांववालों ने सुंदर झील को छोड़ दिया। तिरुवनंतपुरम के अथियन्नूर में जांचकर्ताओं ने पाया कि लोग तंबाकू-मिश्रित पानी को नाक से सूंघते थे, जिससे अमीबा को सीधा रास्ता मिल गया।
कोझिकोड के ओमास्सेरी गांव में एक तीन माह के शिशु के घर का पीने का पानी संक्रमित पाया गया। ये घटनाएं दर्शाती हैं कि दैनिक जीवन की सामान्य आदतें भी अब गंभीर जोखिम बन चुकी हैं।

केरल की स्वास्थ्य प्रणाली की तत्परता

केरल की प्रतिक्रिया तेज और प्रभावशाली रही है। अब राज्य में ही तिरुवनंतपुरम की प्रयोगशाला में Naegleria की पहचान संभव है। डॉक्टरों को तुरंत इलाज शुरू करने और मरीजों से ताजे पानी के संपर्क की जानकारी लेने का प्रशिक्षण दिया गया है। निपाह जैसे पुराने प्रकोपों से मिली सीख ने इस आपदा से निपटने में मदद की।
फिर भी, डॉक्टरों, प्रयोगशालाओं और ICU पर बढ़ता दबाव इस बात का संकेत है कि एक अदृश्य रोगज़नक भी केरल जैसी मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली को झकझोर सकता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Naegleria fowleri को ‘ब्रेन-ईटिंग अमीबा’ कहा जाता है, यह नाक के माध्यम से मस्तिष्क में प्रवेश करता है।
  • वैश्विक मृत्यु दर 97% से अधिक है, जबकि केरल में 2024 में 29 में से 24 मरीज बचाए गए।
  • पहली बार यह संक्रमण 1965 में ऑस्ट्रेलिया में दर्ज हुआ था।
  • तंबाकू मिश्रित पानी को नाक से सूंघने जैसी स्थानीय प्रथाएं भी संक्रमण का रास्ता बन रही हैं।

अनया जैसी मौतें केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय चेतावनी हैं। केरल ने यह सिद्ध किया है कि समय पर उपचार और सतर्कता से जीवन बचाए जा सकते हैं, लेकिन यह भी उजागर हुआ है कि जलवायु परिवर्तन और असुरक्षित प्रथाओं के युग में कोई भी स्वास्थ्य प्रणाली अजेय नहीं है।
डेंगू, निपाह, स्क्रब टायफस, लेप्टोस्पायरोसिस और बढ़ता एंटीबायोटिक प्रतिरोध — ये सभी मिलकर केरल के ‘स्वास्थ्य मॉडल’ को नई चुनौतियों की ओर ले जा रहे हैं। ब्रेन-ईटिंग अमीबा की दस्तक एक गंभीर संकेत है: परिवर्तनशील पर्यावरण और बदलते रोगजनकों की दुनिया में पुरानी सफलताएं भी खतरे में पड़ सकती हैं।

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