केरल में खोजा गया नया फाइटोपैथोजेनिक कवक: स्ट्राइचनोस डालजेली पर नया जैविक खतरा

भारत के पश्चिमी घाट की जैव विविधता से समृद्ध भूमि पर वैज्ञानिकों ने एक नया फाइटोपैथोजेनिक (वनस्पति रोगजनक) कवक प्रजाति की खोज की है — Paramyrothecium strychni। यह नई प्रजाति स्ट्राइचनोस डालजेली (Strychnos dalzellii) नामक औषधीय पौधे की पत्तियों पर उभरते लीफ स्पॉट्स और ब्लाइट्स रोग से जुड़ी पाई गई है।
वैज्ञानिकों द्वारा खोज और पहचान
इस महत्वपूर्ण खोज के पीछे केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वन रोगविज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. शंभु कुमार और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र सिंह हैं। उन्होंने इस कवक की पहचान मॉर्फो-कल्चरल (रूपात्मक-सांस्कृतिक) और मल्टीजीन मॉलिक्यूलर फाइलोजेनेटिक तकनीकों के आधार पर की। यह खोज Fungal Diversity पत्रिका में 29 सितंबर 2025 को प्रकाशित हुई।
स्ट्राइचनोस डालजेली: एक संकटग्रस्त औषधीय वनस्पति
स्ट्राइचनोस डालजेली, जिसे स्थानीय रूप से “कंजिराम” या “मोदीराकंजिराम” कहा जाता है, पश्चिमी घाट की एक स्थानिक (एंडेमिक) औषधीय वनस्पति है। यह IUCN रेड लिस्ट में ‘अशक्त (Vulnerable)’ श्रेणी में शामिल है। इसके एल्कलॉइड्स में दर्दनिवारक, सूजन-रोधी, और रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। पारंपरिक चिकित्सा में यह बुखार, पाचन समस्याओं, गठिया और तंत्रिका विकारों के उपचार में प्रयुक्त होती है।
हालांकि, इसका सीमित वितरण, निवास स्थान का क्षरण और अत्यधिक दोहन इसके अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका है। अब इस नए रोगजनक कवक का हमला इसकी रक्षा को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Paramyrothecium जाति की अब तक विश्व में कुल 25 मान्यता प्राप्त प्रजातियाँ हैं, जिनमें से अधिकांश पौधों की रोगजनक होती हैं।
- यह खोज Paramyrothecium strychni का पहला वैश्विक रिकॉर्ड है।
- स्ट्राइचनोस डालजेली को औषधीय महत्व के कारण पारंपरिक चिकित्सा में उच्च स्थान प्राप्त है, लेकिन यह वर्तमान में जैविक और पर्यावरणीय खतरों से जूझ रही है।
- पश्चिमी घाट को यूनेस्को द्वारा जैव विविधता हॉटस्पॉट घोषित किया गया है, जहाँ अनेक दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।