केरल के एर्नाकुलम में लेप्टोस्पायरोसिस का कहर: तीन सप्ताह में पांच की मौत

केरल के एर्नाकुलम में लेप्टोस्पायरोसिस का कहर: तीन सप्ताह में पांच की मौत

केरल के एर्नाकुलम जिले में लेप्टोस्पायरोसिस के बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ा दी है। 1 जून से 24 जून के बीच जिले में 65 से अधिक संदिग्ध और पुष्टि किए गए मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि इस दौरान पांच लोगों की मौत हो चुकी है। मृतकों में वरापुझा, एडाथाला, मराडु, पालयचुवाडु और त्रिपुनिथुरा के निवासी शामिल हैं। मई में भी कंजीरामट्टम के एक 60 वर्षीय व्यक्ति की मौत इसी बीमारी से हुई थी।

मानसून के बाद तेजी से बढ़े मामले

जून की शुरुआत से ही एर्नाकुलम जिले के अवोली, एडाकोची, नेटूर, मुवाट्टुपुझा, वेंगोला, पिरवोम, मट्टनचेरी, वाझाकुलम, एडाथाला, मराडु, कोडनाड, पेरुंबवूर, चालिकावट्टम, पुथुवाइप, वरापुझा, कालामसेरी, चित्तत्तुकारा, अंगमाली, पालाचुवाडु, आसामनूर, नेदुंबसेरी, कूनमावु, चूर्निक्करा, फोर्ट कोच्चि, राममंगलम, मंजपरा और त्रिपुनिथुरा क्षेत्रों से संक्रमण के मामले सामने आए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारी बारिश के बाद जलभराव और गंदगी के कारण यह रोग तेजी से फैल रहा है।

लेप्टोस्पायरोसिस: संक्रमण, लक्षण और खतरे

लेप्टोस्पायरोसिस एक जीवाणुजनित (बैक्टीरिया से होने वाली) बीमारी है, जो जानवरों की पेशाब या उनके शरीर के तरल पदार्थों से फैलती है। यह जीवाणु, विशेष रूप से चूहों, कुत्तों, गायों और सुअरों की पेशाब में पाया जाता है। संक्रमित पानी या मिट्टी के संपर्क में आने से, विशेषकर जब त्वचा पर चोट या घाव हो, तो यह जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाता है।
प्रारंभिक लक्षणों में तेज बुखार, सिरदर्द, थकावट, मांसपेशियों में दर्द, उल्टी, दस्त, और आंखों का लाल होना शामिल है। गंभीर मामलों में लीवर और किडनी को नुकसान, आंतरिक रक्तस्राव, और पीलिया जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। यह रोग दो चरणों में प्रकट होता है — पहला चरण “लेप्टोस्पाइरेमिक” और दूसरा “इम्यून” चरण होता है। दूसरे चरण में लक्षण अधिक गंभीर होते हैं और मरीज को वील्स सिंड्रोम भी हो सकता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • विश्वभर में हर साल लेप्टोस्पायरोसिस के 10 लाख से अधिक मामले सामने आते हैं, जिनमें करीब 60,000 मौतें होती हैं।
  • यह बीमारी अधिकतर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बारिश के मौसम के बाद फैलती है।
  • संक्रमित जानवरों की पेशाब, दूषित पानी या मिट्टी के संपर्क में आने से यह रोग फैलता है।
  • यह एक ज़ूनोटिक रोग है, यानी जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाला संक्रमण।

रोकथाम और सावधानियां

जिला स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से अपील की है कि वे गीली मिट्टी या गंदे पानी में काम करते समय जूते और दस्ताने पहनें, खासकर अगर शरीर पर कोई घाव हो। कृषि कार्यों, पशुपालन और निर्माण स्थलों पर काम कर रहे लोगों को विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी गई है। घाव वाले व्यक्तियों को तब तक ऐसे कार्यों से दूर रहना चाहिए जब तक उनका घाव पूरी तरह ठीक न हो जाए।
एर्नाकुलम में फैली यह बीमारी केवल एक स्थानीय संकट नहीं, बल्कि मानसून के दौरान पूरे भारत में संभावित खतरे का संकेत है। ज़रूरत है समय रहते सतर्कता बरतने की और स्वास्थ्य सेवाओं को सक्रिय बनाए रखने की, ताकि ऐसी बीमारियों से जनहानि को रोका जा सके।

Originally written on June 27, 2025 and last modified on June 27, 2025.

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