कुषाण साम्राज्य

कुषाण साम्राज्य

कुषाण मध्य एशिया की यूची जाति के थे, यूची एक कबीला था, जो पांच कुलों में बंट गया था। कुषाण उन्ही में से एक कुल था। कुछ विद्वानों द्वारा कुषाणों का मूल स्थान चीन माना जाता है। यूची जनजाति खानाबदोश जनजातियों की भाँती जीवन व्यतीत करती थी।
कुजुल कडफिसेस
भारत में सर्वप्रथम कुजुल कडफ़िसेस नामक कुषाण शासक ने आक्रमण किया। उसका कार्यकाल 30 से 80 ईसवी के मध्य था। उसने सर्वप्रथम उत्तर पश्चिमी क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। कुजुल कडफ़िसेस ने महाराजा की उपाधि धारण की। उसने अपने कार्यकाल में ताम्बे के सिक्के जारी किये थे।
विम कडफिसेस
विम कद्फिसेस कुषाण वंश का महत्वपूर्ण शासक था। इसने कुषाण वंश को एक शक्तिशाली वंश के रूप में स्थापित किया। इसने तक्षशिला और पंजाब पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। विम कडफिसेस ने सोने और ताम्बे के सिक्के जारी किये थे, उन सिक्कों पर एक ओर यूनानी और दूसरी ओर खरोष्ठी लिपि में अंकन किया गया था। उसके सिक्कों पर शिव की आकृति, नन्दी बैल और त्रिशूल आदि अंकित हैं, जो उसके शैव धर्म में आस्था का द्योतक है। इसने माहेश्वर की उपाधि धारण की थी। संभवतः यह वैदिक धर्म का अनुयायी था।
कनिष्क
कनिष्क भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध शासकों में से एक है। वह कुषाण वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था। कनिष्क का शासनकाल 127 से 150 ईसवी के मध्य था। कनिष्क अपनी सैन्य, राजनीतिक और धार्मिक उपलब्धियों के लिए विख्यात है। कनिष्क ने 78 ईसवी में एक संवत् चलाया, जो शक संवत कहलाता है। वर्तमान में इसे भारत सरकार द्वारा उपयोग किया जाता है। कनिष्क ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया था। कनिष्क ने पाटलिपुत्र से प्रसिद्ध विद्वान अश्वघोष, बुद्ध का भिक्षापात्र और एक अनोखा कुक्कुट प्राप्त किया था। कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहां कनिष्कपुर नामक नगर बसाया था। कनिष्क को द्वितीय अशोक भी कहा जाता था। कनिष्क ने सिल्क मार्ग भी शुरू किया था।
कनिष्क के कार्यकाल की एक महत्वपूर्ण घटना चतुर्थ बौद्ध संगीति थी। चतुर्थ बौद्ध संगीति कश्मीर के कुंडलवन में हुई थी। इस संगीति में बौद्ध धर्म का विभाजन हीनयान और महायान सम्प्रदाय में हो गया था। कनिष्क की राजधानी पुरुषपुर तथा मथुरा थी। कनिष्क का चीन के शासक पान-चाओ के साथ युद्ध हुआ, जिसमे पहले कनिष्क की पराजय हुई, परन्तु बाद में कनिष्क विजयी हुआ।
कनिष्क को कला प्रेमी के रूप में भी जाना जाता है। इसके समय में गंधार एवं मथुरा कला शैली का जन्म हुआ। इसके दरबार में पाशर्व, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन और चरक विद्यमान थे। आयुर्वेदाचार्य चरक, कनिष्क का वैद्य था। उसका मंत्री मातर तथा पुरोहित संघरक्ष था। कनिष्क बौद्ध धर्म का पालन करता था, उसने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया था।
कनिष्क के उत्तराधिकारी
कनिष्क के कार्यकाल में साम्राज्य अपने शिखर पर पहुंचा। इस दौरान कनिष्क ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। इस काल में कला और साहित्य का भी समुचित विकास हुआ। कनिष्क का एक प्रमुख उत्तरादिकारी हुविष्क था, उसने कश्मीर में हुष्कर नामक नगर की स्थापना की थी। हुविष्क के शासनकाल में कुषाण सत्ता केंद्र मथुरा में स्थापित हो गया था। हुविष्क के सिक्कों पर शिव, स्कन्द और विष्णु की आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं। इससे अनुमान लगाया जाता है कि हुविष्क वैदिक धर्म का अनुयायी था।
हुविष्क के बाद अन्य महत्वपूर्ण शासक कनिष्क द्वितीय एवं वासुदेव शासक थे। वासुदेव शैव धर्म का अनुयायी था। उसकी मुद्राओं पर शिव और बैल की आकृति उत्कीर्ण है। कुषाण शासकों ने महाराजाधिराज, देवपुत्र, कैसर की उपाधि धारण की। कुषाण शासकों ने अपने कार्यकाल में सबसे अधिक सोने के सिक्के जारी किये थे। कुषाणों ने ही सबसे ज्यादा ताम्बे के सिक्के जारी किये थे।
कुषाण राजाओं ने महाराजाधिराज की जैसी भारतीय उपाधियां धारण की। उन्होंने रोम की व्यवस्था का भी अनुसरण किया। उन्होंने रोम की तरह मृत शासकों की मूर्तियों के लिए मंदिर का निर्माण करवाना आरम्भ किया। इस प्रकार शासकों को देवतातुल्य दर्शाने के प्रयास किया गया। इस प्रकार के मंदिर को देवकुल कहा जाता था।
कुषाणों के काल में मथुरा का कला स्कूल बहुत प्रसिद्ध था। इसके अलावा गांधार में भी एक कला स्कूल स्थित था।

Originally written on May 6, 2019 and last modified on May 6, 2019.

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