कीलाड़ी विवाद और ASI की आलोचना: भारत के पुरातात्विक अनुशासन में नई बहस

तमिलनाडु के कीलाड़ी में पुरातात्विक खोजों को लेकर हाल ही में एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है। इस बार चर्चा का केंद्र है — ख्याति प्राप्त पुरातत्वविद् के. अमरनाथ रामकृष्ण का तबादला और उनकी रिपोर्ट को संशोधित करने की एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) की मांग। यह प्रकरण केवल एक स्थान की खुदाई का मुद्दा नहीं, बल्कि भारत में इतिहास लेखन, वैज्ञानिक स्वतंत्रता और राजनीतिक दखल के सवालों से जुड़ा हुआ है।
कीलाड़ी खुदाई और इसके ऐतिहासिक मायने
2014 में शुरू हुई कीलाड़ी खुदाई में अब तक लगभग 18,000 से अधिक कलाकृतियाँ सामने आ चुकी हैं। प्रारंभिक दो चरणों में मिले 7,500 से अधिक अवशेषों ने यह संकेत दिए कि यह एक सुसंस्कृत, साक्षर और धर्मनिरपेक्ष नगरीय सभ्यता थी। इससे लोहे युग (12वीं से 6वीं शताब्दी ई.पू.) और प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (6वीं से 4वीं शताब्दी ई.पू.) के बीच की ऐतिहासिक रिक्ति को भरने में मदद मिली।
वैज्ञानिकों और इतिहासकारों ने इसे वैगई घाटी सभ्यता का हिस्सा माना है और इसे भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी नगरीकरण लहर (6वीं से 2वीं शताब्दी ई.पू.) से जोड़ा है।
राजनीतिक हस्तक्षेप और संस्थागत संकट
2017 में अचानक रामकृष्ण का तबादला असम कर दिया गया, जिससे विवाद शुरू हुआ। तीसरे चरण की खुदाई को एएसआई द्वारा ‘महत्वहीन’ बताकर रोक देना और बाद में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से इसे तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग को सौंपा जाना, इस विवाद को और गहरा करता है। राज्य विभाग ने इसके बाद स्वतंत्र रूप से खुदाई जारी रखी और प्रमाणों की संख्या दोगुनी हो गई।
2023 में रामकृष्ण द्वारा पहले दो चरणों की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसे एएसआई ने संशोधित करने के लिए कहा — इस पर उन्होंने इनकार कर दिया। रिपोर्ट में उपयोग की गई वैज्ञानिक विधियाँ जैसे स्ट्रैटिग्राफ़िक अनुक्रम, सामग्री संस्कृति विश्लेषण, और कार्बन डेटिंग, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कीलाड़ी में अब तक 18,000 से अधिक पुरातात्विक अवशेष मिले हैं।
- Accelerator Mass Spectrometry तकनीक से प्रमाणों की कार्बन डेटिंग की गई।
- तमिलनाडु सरकार द्वारा संचालित “Navalpaakam-Keeladi-Vaigai Valley Civilisation” प्रोजेक्ट ने कीलाड़ी को वैगई नदी सभ्यता के रूप में मान्यता दी है।
- केंद्र बनाम राज्य विवाद में कीलाड़ी की रिपोर्ट को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय भी हस्तक्षेप कर चुका है।
द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण: वैज्ञानिकता बनाम राष्ट्रवाद
तमिलनाडु में कीलाड़ी, अडिचनल्लूर और सिवगलाई जैसे स्थलों पर जहां एएसआई ने धीमी प्रक्रिया और निष्क्रियता दिखाई, वहीं राजस्थान के बहाज गाँव में पौराणिक सरस्वती नदी से जुड़ी खुदाई को बढ़ावा दिया गया। यह विरोधाभास यह संकेत देता है कि एएसआई की कार्यप्रणाली में ‘मेथडोलॉजिकल नेशनलिज्म’ की झलक मिलती है — एक ऐसी पद्धति जो एकरूप, केंद्रीयकृत राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को प्राथमिकता देती है।
इसके विपरीत, फ्रांस, जर्मनी और जापान की पुरातात्विक संस्थाएँ नियमित रूप से अपने निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय अकादमिक प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित करती हैं, जिससे पारदर्शिता, अकादमिक विमर्श और वैश्विक सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।
सुधार की आवश्यकता
भारत में पुरातत्व के क्षेत्र को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सुसज्जित और संस्थागत पारदर्शिता से पूर्ण बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए आवश्यक कदम:
- संस्थागत स्वायत्तता और वित्तीय स्वतंत्रता
- वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धतियों का आधुनिकीकरण
- खुले रिव्यू सिस्टम और वैश्विक अकादमिक सहभागिता
- राजनीतिक हस्तक्षेप से स्वतंत्र कार्य संस्कृति
भारत की ऐतिहासिक विविधता को समझने के लिए एक बहुलतावादी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है — न कि एकरूप और नियंत्रित ऐतिहासिक आख्यानों की। कीलाड़ी विवाद इस व्यापक विमर्श का प्रतीक बनकर उभरा है और यह संकेत देता है कि भारतीय पुरातत्व को अब केवल खुदाई की नहीं, बल्कि दृष्टिकोण और व्यवस्था की भी खुदाई की आवश्यकता है।